एमबीएम न्यूज़/शिमला
“खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है”
चंबा के दुर्गम क्षेत्र पांगी के रहने वाले जिस युवक का हम जिक्र करेंगे, उसकी सफलता की कहानी एक नहीं, बल्कि कई मायनों में असाधारण है।
“आंखे है दिखता नहीं, कान है सुनता नहीं, दिल है धड़कता नहीं”
ऐसी भयावह स्थिति की खुद ग़ुरबत सही। ऊपर से दो बहनों की जिम्मेदारी, मुंह बाए लक्ष्य को भेदने से रोकती रही। सोचिए, एक बच्चे के पास स्कूल जाने के लिए जूते नहीं है, अगर मिल भी जाए तो उसे फटी हालत में सालों तक पहनता है, जब तक पांव में आना बंद न हो जाए। गुरबत ऐसी की कुदरत भी सोचने पर विवश हो जाए कि आखिर ऐसा क्यों कर बैठे? प्रारंभिक शिक्षा से ग्रेजुएशन तक युवक के जब जूते फट जाते थे तो नंगे पांव भी आना-जाना रहता था।
गरीबी ऐसी थी कि पिता मनरेगा की दिहाड़ियाँ लगाकर साल भर में महज 13 हजार 500 रुपए कमाया करते थे। इसमें 4 बच्चों के लालन-पालन के अलावा घर के चूल्हे का खर्च भी होता था। कुदरत की विडंबना देखिए कि परिवार ने जैसे-तैसे अपनी दो बेटियों की शादी कर दी। बीमारी से जूझ रही मां को उपचार के लिए इधर-उधर ले जाने की जिम्मेदारी भी देवराज पर ही थी।
करीब 10 दिन पहले देवराज ने अपने पिता अमरनाथ से मनरेगा की दिहाड़ियाँ छुड़वा दी है। लेकिन मां रूसली अब भी भेड़-बकरियों को चराने जाती है। अब आप यह जानकर आश्चर्यचकित होंगे कि इन हालातों का सामना करते हुए आज 27 वर्षीय देवराज ठाकुर हिमाचल प्रदेश पुलिस सेवा का अधिकारी बनने की ट्रेनिंग ले रहा है। 2015 व 17 में यूपीएससी की मेन्स परीक्षा में हिस्सा लिया।
बचपन से ही मुसीबतों का सामना करने वाला देवराज इस असफलता पर भी विचलित नहीं हुआ। अपनी धुन में आगे पढ़ने की कोशिश में लगा रहा। नतीजा यह हुआ कि 2019 में हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित परीक्षा में एचपीएस अधिकारी बन गया। 20 जुलाई को देवराज की हिपा में ट्रेनिंग पूरी हो जाएगी। इसके बाद दूसरे चरण में पीटीसी डरोह में शारीरिक प्रशिक्षण का रुख करेंगे।
दीगर बात यह भी है कि शिमला आने के बाद जब रहने का ठिकाना मिला तो मकान मालिक ने बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की शर्त रखी। उन्होंने कहा वह पूरी मेहनत से बच्चों को पढ़ाते थे। इसके बदले उन्हें केवल खाना ही मिलता था।
क्या बोले देवराज….
विशेष बातचीत के दौरान एचपीएस ट्रेनी देवराज ठाकुर ने गुरबत से जुड़े अहम पहलू सांझा किए। बोले, दसवीं में पढ़ाई के दौरान मजदूरी शुरू कर दी थी। स्कूल में अंग्रेजी के शिक्षक ने उसे पानी भरने, ब्रेकफास्ट व लंच-डिनर बनाने के लिए रखा। इसके बदले उसे केवल खाना मिलता था। कई बार शिक्षक उनसे पूछते थे कि वह नंगे पांव क्यों आता है? वह फिटनेस का बहाना बनाया करते थे। देवराज ने बताया कि 11वीं व 12वीं कक्षा में पत्थर तोड़ने शुरू किए, लेकिन उसे 200 की बजाए 155 रुपए प्रतिदिन दिहाड़ी दी जाती थी। क्योंकि ठेकेदार का कहना था कि अस्थाई मजदूरों को पूरी दिहाड़ी नहीं दी जा सकती।
उन्होंने कहा कि जब वह 12वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद शिमला आना चाहते थे तो पिता ने सिर्फ एक ही सवाल पूछा था कि खर्चा कैसे आएगा। लेकिन उन पर उच्च शिक्षा के लिए शिमला जाने का जुनून था। धीरे-धीरे हर एक कदम पर समाज के कुछ नेक लोगों का सहयोग मिलना शुरू हो गया। एक महत्वपूर्ण खुलासे में देवराज ठाकुर ने कहा कि परिवार के पास केवल 2 बीघा भूमि हैं। इसमें से एक बीघा बंजर है। उन्होंने कहा कि एक पुलिस अधिकारी बनने का सपना पूरा हुआ है। लेकिन अब भी यूपीएससी में अपने शेष चांस को लेकर परीक्षा देंगे।
उनका कहना था कि ट्रेनिंग पूरी होने के बाद ही वह दोबारा यूपीएससी की परीक्षा की तैयारी शुरू करेंगे। 13 मार्च 1992 को जन्मे देवराज ठाकुर ने प्रारंभिक पढ़ाई अपने गांव के आस-पास ही पूरी की। मगर दसवीं कक्षा की पढ़ाई के लिए 30 किलोमीटर दूर मामा के घर जाना पड़ा। क्योंकि गांव के नजदीक स्कूल में शिक्षक नहीं थे। मेडिकल में बीएससी करने के बाद देवराज का चयन एमएससी के लिए हो गया था, लेकिन उनका जुनून पुलिस अधिकारी बनने का था। लिहाजा एमएससी में दाखिला नहीं लिया।
यह बने मसीहा….
बेशक ही समाज में बेईमानी का बोलबाला है। मगर अब भी ऐसे लोग मौजूद हैं जो गरीबों के लिए मसीहा बन जाते हैं। एचपीएस ट्रेनी देवराज ठाकुर ने बताया कि समाज सेविका सुविधा रेड क्रॉस सोसायटी शिमला व ठेकेदार मानसिंह के अलावा बॉटनी की असिस्टेंट प्रोफेसर अनुप्रिया से मिले सहयोग को वह ताउम्र याद रखेंगे।
पिता पर है लाखों का कर्ज़….
बेटे को शिमला में उच्च शिक्षा प्रदान करवाने के लिए पिता अमरनाथ ने मनरेगा की दिहाड़ियों के अलावा अतिरिक्त समय में कारपेंटर का कार्य भी शुरू किया। इस दौरान बेटे को पढ़ाने के लिए लोगों से तकरीबन साढ़े चार लाख की उधार राशि ली। इस राशि में से ढाई लाख रुपए की उधारी चुका दी गई है। एचपीएस ट्रेनी देवराज ठाकुर का भाई भी जेबीटी बन चुका है। लिहाजा दोनों बेटे मिलकर परिवार की गुरबत को समाप्त करना चाहते हैं।
2012 में घर पर आई लाइट….
प्रदेश हवा में उड़ने की योजनाएं बना रहा है, लेकिन अब भी रिमोट क्षेत्रों में लोगों का जीवन बेहद ही चुनौतीपूर्ण है। आप यह जानकर भी हैरान होंगे कि देवराज ठाकुर के घर पर 2012 में बिजली आई। इस पर देवराज ठाकुर का कहना था कि वह अपने भाई के साथ महज एक लालटेन के सहारे रात भर पढ़ा करते थे। सुबह मिट्टी तेल से जलने वाले लैंप के कारण चक्कर भी आने लगते थे। घर में दरवाजे व खिड़कियां भी नहीं थे। लिहाजा जानवरों का डर व मौसम की मार का भी भय बना रहता था।