शैलेंद्र कालरा/शिमला
सपनों को साकार करने का दृढ़ निश्चय हो तो हर हाल में कामयाबी कदम चूमती है। शिद्दत से कोशिश पर कायनात भी साथ निभाती है। इन शब्दों को 25 साल की उम्र में अंतरिक्ष वैज्ञानिक बनकर कांगड़ा के विकास कुमार ने सार्थक कर दिखाया है। दसवीं की पढ़ाई सरकारी स्कूल से की। बी टेक की पढ़ाई के लिए कोई भी कोचिंग हासिल नहीं की। बचपन से ही स्कॉलरशिप हासिल करता रहा। इलाके में उच्चशिक्षा के लिए बेहतरीन सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। बावजूद इसके विकास ने जो कर दिखाया है, वो पूरे प्रदेश के युवाओं के लिए एक मिसाल बन गया है।
पिता से जब एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने बातचीत की तो साफ महसूस किया जा सकता था कि बेटे की कामयाबी पर पिता किस तरह से गौरव महसूस कर रहे हैं। दसवीं की पढ़ाई सरकारी स्कूल में पूरी की। कांगड़ा के गांव में जमा दो की पढ़ाई उपलब्ध नहीं थी। यही कारण था कि जमा दो की पढ़ाई करने के लिए एक निजी स्कूल में दाखिला लिया। इसके बाद सुंदरनगर में बीटेक की पढ़ाई पूरी की। साधारण परिवार में जन्मे विकास की गृहिणी मां ने अपने बच्चों की परवरिश में कोई कमी नहीं रखी। बेटे की सफलता में मां की भी अग्रणी भूमिका रही है।
मेधावी विकास को पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज चंडीगढ़ में एमटेक की पढ़ाई के लिए दाखिला मिल गया। चूंकि मेधावी भी थे। साथ ही मैकेनिकल ट्रेड में आउटस्टैंडिंग अंक हासिल किए, लिहाजा नौकरी की कोई समस्या नहीं थी। एमटेक की पढ़ाई पूरी होने के बाद विकास ने एयर इंडिया में बतौर मैकेनिकल इंजीनियर नौकरी शुरू कर दी। लेकिन जीवन का लक्ष्य कुछ और ही सोच रखा था, वो तो एक वैज्ञानिक बनने का सपना संजोए हुए थे।
मेहनत व लग्न से लक्ष्य हासिल करने की कोशिश में लगे विकास को उस समय सफलता मिल गई, जब हाल ही में स्पेस सैंटर में ज्वाइनिंग मिल गई। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में विकास के पिता का कहना था कि बच्चों को उनकी सोच के मुताबिक आगे बढ़ने देना चाहिए। उन्होंने कहा कि पूरे परिवार के लिए यह अविश्वसनीय था कि बेटा अंतरिक्ष वैज्ञानिक बन गया है।