रेणु कश्यप /नाहन
सूबे में निजी स्कूलों द्वारा शिक्षा के व्यवसायीकरण को लेकर खासा बवाल मचा हुआ है। अभिभावकों से बार-बार यह भी सवाल पूछा जा रहा है कि बच्चों के दाखिले सरकारी स्कूल में क्यों नहीं करवा रहे। उत्पीड़न तभी होता है, जब आप उत्पीड़न के लिए तैयार होते हैं। इसी बीच एक बेहद सकारात्मक खबर आई है। 25 साल की उम्र में हिमाचल प्रदेश वन सेवा अधिकारी बने डीएफओ श्रेष्ठानंद शर्मा ने अपने चार वर्षीय बेटे की पढ़ाई सरकारी स्कूल से शुरू की है। साथ ही इस बात का भी दृढ़ संकल्प लिया है कि सरकारी स्कूल में आगे भी पढ़ाई करवाएंगे।
32 वर्षीय डीएफओ श्रेष्ठानंद ने शनिवार को अपने इकलौते बेटे भार्गव शर्मा का दाखिला राजकीय केंद्रीय आदर्श पाठशाला ददाहू में करवाया है। जब पहले नवरात्रे पर डीएफओ अपनी पत्नी अमिता शर्मा के साथ बेटे का दाखिला करवाने स्कूल पहुंचे तो हर कोई दंग रह गया। 2012 में नेरवा में दर्जी की दुकान चलाने वाले पूर्ण चंद शर्मा के बेटे श्रेष्ठानंद शर्मा ने एचएफएस की परीक्षा उत्तीर्ण कर परिवार को गौरवान्वित किया था।
चौपाल उपमंडल की किरन पंचायत के थिथरोली गांव के रहने वाले डीएफओ का यह कदम उन अधिकारियों खासकर शिक्षकों के लिए प्रेरणा बना है, जो महंगे निजी स्कूलों में अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं, क्योंकि मौजूदा समय में बच्चों की शिक्षा भी माता-पिता का स्टेटस सिंबल बन गया है।उ नका कहना है कि पिता ने 1998 तक टेलरिंग की दुकान से परिवार का गुजर बसर किया, इसके बाद खेतीबाड़ी से परिवार चलाया।
क्यों चुना सरकारी स्कूल….
डीएफओ ने अपने बच्चे की शिक्षा के लिए सरकारी स्कूल का चुनाव कुछ खास कारणों को लेकर किया है। उनका मानना है कि निजी स्कूलों की तुलना में सरकारी विद्यालयों के शिक्षक बेहतरीन होते हैं। अब चूंकि उन्होंने अपने बेटे को भी सरकारी स्कूल में दाखिल कर दिया है तो लाजमी तौर पर अन्य बच्चों पर भी अधिक ध्यान केंद्रित होगा। उन्होंने कहा कि बच्चे अमीर-गरीब का कोई फर्क नहीं समझते हैं। अमूमन हरेक बच्चे का व्यवहार एक जैसा ही होता है।
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि पत्नी के अलावा माता-पिता ने भी एकमत होकर इस बात पर हामी भरी कि बेटे को सरकारी स्कूल में पढ़ाओ। डीएफओ का यह भी कहना है कि हालांकि लोगों का निजी स्कूलों से मोह भंग हो रहा है, लेकिन सरकारी स्कूलों में बच्चों के दाखिले को लेकर साहस नहीं कर पा रहे हैं। समाज के सामने अनुकर्णीय उदाहरण पेश करने वाले वन मंडलाधिकारी श्रेष्ठानंद का यह भी कहना है कि स्वयं भी सरकारी स्कूल में पढ़कर इस मुकाम तक पहुंचे हैं तो बेटा क्यों नहीं पढ़ सकता।
बहरहाल इस कोशिश में एक सवाल यह उठता है कि जब माता-पिता का होनहार बेटा पहली से 12वीं कक्षा तक सरकारी स्कूल में पढ़कर महज 25 साल की उम्र में वन सेवा अधिकारी बन सकता है तो अन्य बच्चे क्यों नहीं।