एमबीएम न्यूज/ नाहन
प्रयास रहता है कि प्रेरणादायक दास्तां को आपसे समय-समय पर सांझा किया जाता रहा, ताकि अन्य भी प्रेरणा लेकर आगे बढ़े। गुरबत के साथ जीवन का संघर्ष इतना आसान नहीं होता, लेकिन पच्छाद विकास खंड की चमेंजी पंचायत के सरोल गांव के अक्षय कुमार ने जीवन की जो पहली सफलता पाई है, वो एक मिसाल है।
23 साल के अक्षय के संघर्ष की दास्तां जानकर खुद आईपीएस रोहित मालपानी भी प्रभावित हुए हैं। छठी कक्षा से ही अक्षय का संघर्ष शुरू हो गया था। जमा दो नॉन मेडिकल से बढिय़ा अंकों से उत्तीर्ण की, लेकिन बी टेक नहीं कर सकते थे, क्योंकि परिवार खर्च उठा पाने में असमर्थ था। दसवीं कक्षा में स्कॉलरशिप से 10 हजार रुपए की राशि मिली थी। इसी के दम पर आर्टस संकाय में पीजी कॉलेज सोलन में दाखिला ले लिया। लेकिन यह राशि नाकाफी साबित हो रही थी।
दादा गांव से बस में दूध भेजा करते थे। तय हुआ कि बस का मालिक ही दूध लेगा। इसकी एवज में अक्षय को गांव तक आने-जाने के लिए बस का किराया नहीं देना पड़ेगा। पढ़ाई का बोझ बढऩे लगा तो गांव अप-डाऊन करना मुश्किल हो गया। लिहाजा टयूशन पढ़ाने का फैसला लिया, लेकिन वहां पर भी उसे मेहनताना नहीं मिला। यह अलग बात है कि 20-21 साल की उम्र में अक्षय ने जिन छात्रों को पढ़ाया, उनमें से कई भारतीय सेना में भर्ती पाने में सफल हुए।
पढ़ाई के लिए खर्च न होने के कारण नौबत यह भी आई कि करीब एक महीने तक अक्षय को हलवाई की दुकान में काम करना पड़ा। समय के अभाव के कारण अक्षय ने हलवाई का काम छोड़ कर किताबों की दुकान में नौकरी करनी शुरू की। पिता की मानसिक हालत ठीक न होने के कारण अक्षय पर परिवार की देखभाल की भी जिम्मेदारी थी। रोशन लाल व कांता देवी के घर जन्में अक्षय का बड़ा भाई अजय कुछ खेती-बाड़ी से कमाता है, लेकिन दो वक्त की रोटी का इंतजाम भी मुश्किल हो जाता है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने होनहार अक्षय से बातचीत की तो बताया कि पहले भी दो बार भर्ती में चयन हुआ था, लेकिन साक्षात्कार में पीछे रह गया। यह तीसरा व अंतिम प्रयास था। अहम बात यह भी है कि अक्षय ने ओपन कैटेगरी की लिखित परीक्षा में 17वां स्थान हासिल किया था, लेकिन साक्षात्कार के बाद अक्षय का रैंक 7वें स्थान पर आ गया। अक्षय का यह भी कहना है कि पुलिस कांस्टेबल बनना अंतिम लक्ष्य नहीं है, लेकिन यह कामयाबी मिलने से परिवार को कुछ आर्थिक मदद मिल जाएगी।
कुल मिलाकर अक्षय के कांस्टेबल बनने का संघर्ष उन युवाओं के लिए बड़ी प्रेरणा का स्त्रोत है, जो मामूली सी असफलता पर खुद को असहाय समझ कर आगे की राह को छोड़ देते हैं।