नाहन (शैलेंद्र कालरा) : कुदरत ने हाउसिंग बोर्ड कालोनी में रहने वाले अग्रवाल परिवार को एक अनूठी सौगात दी है। घर के गमले में दुर्लभ ‘‘ ब्रह्मकमल’’ खिलने से परिवार फूला नहीं समा रहा। रात के वक्त जब फूल खिला तो घर की छत पर बना आंगन दुधिया रोशनी में नहा गया।
फूल खिलने की सामान्य प्रक्रिया की तुलना में एक गमले में फूल खिलना दो कारणों से भी अलग है। पहला यह कि यह फूल सामान्य तौर पर 10 से 16 हजार फुट की ऊंचाई पर खिलता है। जबकि नाहन की ऊंचाई 3 हजार फुट के आसपास है। दूसरी वजह यह है कि बेहद मनमोहक व आकर्षक फूल जुलाई-अगस्त माह में खिलता है, लेकिन प्रकृति ने यह सौगात जून के पहले सप्ताह में ही परिवार को दी है।
उत्साहित परिवार ने बेहद मनमोहक व आकर्षक फूल को कैमरे में भी कैद किया। परिवार के मुखिया भारत अग्रवाल व सरोज अग्रवाल ने बताया कि सात साल बाद वह पल नसीब हुए, जब साक्षात घर में ब्रह्मकमल खिला। उन्होंने बताया कि 5 से 7 जून के बीच पांच फूल खिले।
क्या है फूल की खासियत?
बताया गया कि भारत में इस फूल की 60 से 70 प्रजातियां पाई जाती हैं। इसमें से 55 से 60 प्रजातियां हिमालय की पर्वत श्रृंखलाओं में मिलती हैं। इस फूल का वनस्पतिक नाम सोसेरिया ओबोवेलाटा है। यह फूल एक साल में केवल दो घंटों के लिए ही खिलता है।
अग्रवाल परिवार के सदस्य सरोज अग्रवाल ने बताया कि रात को 9 बजे के आसपास फूल खिलने के संकेत मिलने लगे थे। रात 12 बजे से पहले फूल मुरझा गया। उन्होंने बताया कि फूल खिलने के वक्त गमले के आसपास पूरी रोशनी बिखर गई थी। इस फूल में कई औषधीय गुण भी विद्यमान हैं।
कैसे पता चला कि फूल खिल रहा है?
5 जून की रात घर में मनमोहक खुशबू आने लगी। परिवार चौकन्ना हो गया क्योंकि वह जानते थे कि यह उसी सूरत में होगा, जब फूल खिलेगा। परिवार के सदस्यों के साथ-साथ पड़ोसी भी फूल के आसपास इकट्ठा हो गए। अपनी समझ से भारत अग्रवाल ने ब्रह्मकमल की तस्वीरें ली। साथ ही वीडियो भी बनाया।
सात सालों से नहीं लगाया घर में ताला
परिवार का कहना है कि दो पौधे बद्रीनाथ से सात साल पहले लाए गए थे। जबकि दो पौधों को इंदौर से लाया गया था। पौधे की सेवा बच्चों से भी अधिक करनी पड़ी। गर्मी बढऩे पर पौधे की सिंचाई बर्फ से की जाती है। साथ ही इस बात का भी खास ध्यान रखा जाता है कि पौधे में बर्फ किस समय डाली जाए। घर में ब्रह्मकमल का पौधा होने से परिवार ने सात सालों से घर में ताला भी नहीं लगाया है क्योंकि सुबह-शाम पौधे की निगरानी करनी पड़ती है।