नाहन (एमबीएम न्यूज): सादगी की पाटी से परिपूर्ण प्रो.जगत राम ने मुकाम हासिल करने के लिए 45 वर्ष का संघर्ष किया है। कैरियर के दौरान बेदाग छवि, ईमानदारी व कार्य के प्रति समर्पण ही तीन ऐसे मूलमंत्र रहे, जिनकी बदौलत आज पीजीआई चंडीगढ़ के निदेशक हैं। प्रो. जगत राम का जन्म 17 अक्तूबर 1956 को पबियाना के छोटे से गांव पटाडिया में हुआ था। पिता ध्यानु राम पेशे से किसान हैं।
केंद्र सरकार ने प्रो. जगत राम को यह जिम्मेदारी पांच साल के लिए सौंपी है। 65 साल की उम्र सीमा है। लिहाजा स्पष्ट है कि प्रो. जगत राम इस महत्वपूर्ण ओहदे पर करीब साढ़े चार साल तक बने रहेंगे। 10 भाई-बहनों में प्रो. जगत राम दूसरे स्थान पर हैं। प्राथमिक पाठशाला पबियाना में पूरी करने के बाद मैट्रिक की शिक्षा राजगढ़ में पूरी की। इसके बाद एमबीबीएस में चयन हो गया। वर्ष 1979 में पीजीआई में एमडी करने के लिए प्रवेश लिया।
बताते हैं कि जब एमडी करने पीजीआई पहुंचे थे तो एक मर्तबा पेड़ के नीचे भी रात गुजारनी पड़ी थी। 1982 में अपना कैरियर शुरू किया। प्रो. जगत राम के एक सहपाठी ललित किशोर शर्मा बताते हैं कि डॉ. जगत स्कूल के वक्त काफी सस्ते कपड़े पहना करते थे, लेकिन कक्षा में सदैव अव्वल रहते थे।
प्रो. जगत राम ने पीजीआई में विभिन्न पदों रहकर अपनी सेवाऐं दी है। निदेशक के पद पर आसीन होने से पूर्व प्रो. जगतराम पीजीआई के नेत्र विज्ञान विभाग में बतौर प्रोफेसर कार्यरत थे, इस दौरान इन्हें नेत्र विशेषज्ञ में प्रवीणता एंव योग्यता के आधार पर राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेकों बार सम्मानित भी किया गया। इनके द्वारा अबतक 32 शोधपत्र भी लिखे जा चुके हैं, जिसके लिए इन्हें राष्ट्रीय स्तर पर पुरस्कृत किया गया।
देश के लिए यह गौरव का विषय हैं कि मोतियाबिंद एवं अपवर्तक सर्जरी सोसायटी ऑफ अमेरिका द्वारा वर्ष 2016 के वार्षिक सम्मेलन के अवसर पर प्रो. डेविड आर हरडेंट द्वारा दूसरी बार डा0 जगत राम को बेस्ट ऑफ द बेस्ट अवार्ड से विभूषित किया गया था ।
अपने अनुभवों को सांझा करते हुए प्रो. जगतराम अपनी सफलता का श्रेय अपने पूज्य माता-पिता को देते हैं, जिन्होने विपरित परिस्थितियों के बावजूद भी उन्हें इस मुकाम तक पहुंचाया है। उनका कहना है कि अतीत में लोगों के पास आय के कोई ठोस साधन नहीं थे, केवल पांरपरिक कृषि पर निर्भरता थी। इसके अतिरिक्त शिक्षा के साधन भी सीमित थे। उन्होने कहा कि प्रशिक्षण दौरान भी उन्हें काफी आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा, परन्तु अपने डाक्टर बनने के सपने को चूर नहीं होने दिया।
इनका कहना है कि उनका उददेश्य चिकित्सक बनकर पीड़ित व्यक्तियों की सेवा करना है। भाग्य विडंबना है कि जिस पीजीआई के बाहर खुले मैदान में एमडी की परिक्षा देने के दौरान रात गुजारी थी आज डा जगतराम उसी संस्थान के प्रमुख बन गए हैं ।
डॉ. जगतराम जिस पृष्ठभूमि से निकलकर अपने मुकाम को हासिल किया है , अपने आप में एक अभूतपूर्व मिसाल है और इन्होने यह भी सिद्ध करके दिखा दिया कि कॉनवेंट स्कूल की अपेक्षा ग्रामीण सरकारी स्कूलों में शिक्षा ग्रहण वाले बच्चें भी उच्च पद पर पहुंच सकते हैं, जिसके लिए दृढ़ इच्छा, एक लक्ष्य और कड़ी मेहनत की आवश्यता होती है ।