त्रिलोकपुर (कालाअंब) : दूनी चंद ठाकुर, गांव बागथन, जिला सिरमौर गर्व से कहते हैं मैं डा. परमार के गांव के रहने वाला हूं। मूल रूप से कृषक ठाकुर वर्तमान में मां बालासुंदरी मंदिर परिसर में ‘ठाकुर जी प्रसाद वाले’ नाम से प्रसाद की दुकान चलाते हैं। पहले रोजी रोटी के लिए उन्हें क्या कुछ नहीं करना पड़ा। यहां-वहां भटकते फिरते दूनी चंद अचानक माता बालासुंदरी के दरबार में माथा टेकने क्या आए, बस यहीं का होकर रह गए। शुरू-शुरू में उन्होंने मां बालासुंदरी को भेंट करने के लिए फूलों को बेचना शुरू किया। यहां-वहां से फूल एकत्रित कर उन्होनें दोन्ने में फूल बेचने का छोटा सा कारोबार शुरू किया। वे दोने में सजाकर मां भगवती को फूल भेंट करने के लिए भक्तो को प्रेरित करने लगे। देखते ही देखते उनका काम चल निकला। रोजी-रोटी का जुगाड़ हो गया।
पांव जमे तो कुछ समय बाद इन्होंने परिसर में ही किराए पर दुकान ले ली। माता को चढ़ने वाले प्रसाद का कारोबार करने लगे। मां के आशीर्वाद से उनका पूरा परिवार सेटल हो गया है। गांव में थोड़ी और जमीन भी ले ली है। बेटा गांव में अपना कारोबार चला रहा है।
दूनी चंद ठाकुर कहते हैं : ‘‘यहां मां के चरणों में बैठकर बड़ा सुकून मिलता है।’’ उनकी पत्नी यद्यपि हरियाणा के यमुनानगर की है। किन्तु पहाड़ी संस्कृति में रच-बस गईं है। इस दंपत्ति को अपनी पृष्ठभूमि के कारण हरियाणा और हिमाचल से आने वाले माता के भक्तो की खूब पहचान है। या यूं कहें परिवारों को पहचाने में उन्हें गजब की महारत हासिल है। वाहन संख्या और वेशभूषा से वह व्यक्ति के आवास क्षेत्र का पता लगा लेते हैं।
जैसे ही हम वाहन पार्क कर मंदिर की तरफ बढे़ सामने से आवाज आई- ‘‘आओ जी सोलन वालो आओ।’’ एक क्षण के लिए मैं दंग रह गया। मैंने अपनी वाईफ को कोहनी मारी- ‘‘यार तुम्हें पहचान लिया है। अब यहीं से प्रसाद लो।’’ रोजी-रोटी के साथ दूनी चंद पिछले कई सालों से पथरी का उपचार भी करते हैं। कहते हैं कि मां बालासुंदरी के आशीर्वाद से अभी तक करीब 250-300 लोगों का उपचार कर चुके हैं। ठाकुर पथरी की दवाई एक सन्यासी बाबा के नुस्खे के आधार पर देते हैं।
भाग्यशाली हैं दूनी चंद ठाकुर जैसे लोग जो मां बालासुंदरी के चरणों में बैठकर अपने परिवार का भरण पोषण करने के साथ। लोगों के दुखों को दूर करने का भी प्रयास करते हैं।
हे मां त्रिपुरी बालासुंदरी सभी भक्तो पर अपनी कृपा बरसाए रखना।
-आनंद राज