नाहन (एमबीएम न्यूज़) : मकर-सक्रांति का त्यौहार जहां पूरे देश में सूर्यदेव की अराधना तथा लोहडी का पर्व अग्निदेव कीे तिल एवं गुड से पूजा के साथ मनाया जाता है, वहीं पर सिरमौर जिला के गिरिपार क्षेत्र में बूढ़ी दिवाली के उपरान्त यह पर्व माघी त्यौहार के नाम से बडे हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। बदलते परिवेश के बावजूद भी सिरमौर के गिरिपार क्षेत्र में प्राचीन परंपराऐं एवं समृद्ध संस्कृति अभी भी प्रचलित है, जिसे लोग बड़ी व उल्लास में मनाते हैं।
कालान्तर से माघी त्यौहार पर बलि प्रथा का विधान था, परन्तु लोगों में जागरूकता आने व माननीय उच्चतम न्यायालय द्वारा बलि प्रथा को बन्द किए जाने के उपरांत अब लोग माघी त्यौहार पर लोग विशेषकर मीट तथा पारंपरिक व्यंजनों का भरपूर आन्नद लेते है।
इस दिन लोग अपने आराध्य पीठासीन देवता की पारंपरिक ढंग से पूजा अर्चना भी करते हैं। विशेषकर जिला सिरमौर में चार बड़ी साजी अर्थात सक्रांति पर देव पूजा की परम्परा प्रचलित है। जिसमें वीशू अर्थात वैशाख सक्रांति, हरियाली, दिवाली और माघी अर्थात मकर सक्रांति शामिल है। लोगों की आस्था है कि इन चार बड़ी साजी पर पीठासीन देवता की पूजा से देवी देवता प्रसन्न होते है और क्षेत्र में समृद्धि एवं खुशहाली का सूत्रपात होता है।
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माघी पर्व पर लोग अपने सगे संबंधियों विशेषकर बेटियों को आमंत्रित करके कई दिन तक त्यौहार का पूर्ण आनन्द लिया जाता है। गिरिपार क्षेत्र की 125 पंचायतों में लगभग 44 हजार परिवार रहते है और इस क्षेत्र के साथ लगते उत्तराखण्ड के जौनसार-बाबरक्षेत्र में भी माघी त्यौहार को पांरम्परिक तरह के साथ मनाने की प्रथा प्रचलित हेै। इस दिन विशेषकर मीट बनाने की परंपरा है परन्तु जो व्यक्ति मीट इत्यादि नहीं खाते, उनके लिए मीठी रोटियां, खुबले, खीर इत्यादि व्यंजन बनाते हैं।
एक सप्ताह तक चलने वाले इस त्यौहार के उपरांत खोड़ा त्यौहार मनाया जाता है, जिसमें सगे संबधियों और गांव के लोगों को आमंत्रित करके विशेष पकवान बनाए जाते हैं और रात्रि को नाटी का जश्न माला नृत्य के रूप में किया जाता है। त्यौहार दौरान सभी व्यक्ति अपनी बेटियों को भी उनके घर विशेष व्यंजन और गुड़ की भेली ले जाने की परंपरा है।
माघी त्यौहार का जश्न गिरिपार क्षेत्र में लगभग एक सप्ताह तक मनाया जाता है। इस वर्ष भी यह त्यौहार 12 जनवरी से आरंभ हो गया है जिसमें विभिन्न गांव में अलग-अलग तिथियों में यह त्यौहार मनाया जा रहा है। विशेषकर सर्दियों को मध्यनजर रखते हुए लोग पारंपरिक व्यंजन भी बनाते है और जबकि सिरमौर के अन्य क्षेत्रों मे मकर सक्रांति का त्यौहार खिचडी बनाने एवं दान करने के साथ मनाया जाता है। जिला के उपरी क्षेत्रों को सक्रांति के दिन लोग अपने अराध्यदेव के मंदिर में जाकर पारंपरिक पूजा करते है ताकि वर्ष के दौरान क्षेत्र व परिवार में सुख समृद्धि बनी रहे।
जिला के कई क्षेत्रों में लोहडी की रात को अलाव जलाकर तिल एवं रेवडियो के साथ अग्नि
पूजा करने का विधान है। लोग अग्निदेव की पूजा के साथ-साथ रात्री को नाच-गाकर लोहडी को मनाते है। शास्त्रों के अनुसार मकर सक्रांति के दिन सूर्य भगवान की गति उतरायण की तरफ हो जाती है, दिन बढने लगते है और रातें छोटी होने लग जाती है।
लोहडी की कथा दुल्ला भटटी के साथ भी जुडी है, जो कि एक वीर योद्धा थे जिसने मुगलों के जुल्मों के खिलाफ कदम बढाया था और एक गरीब ब्राहमण की दो बेटियों की शादी दुल्ला भटटी द्वारा जंगल में अलाव जलाकर करवाई गई थी और इसी परंपरा के अनुसार बच्चे सुंदरिए-मुदरिए हो, तेरा कौन विचारा हो, दुल्ला भटटी वाला हो, दुल्ल धी ब्याही हो, सेर शक्कर पाई हो्य नामक लोहडी गीत गाकर पैसे मांगते है।
पारंपरिक त्यौहार जहां लोगो में आपसी प्यार एवं सद्भावना का संदेश देते है वहीं पर इनके आयोजन से लोगो में पारस्परिक मेलजोल के साथ-साथ राष्ट्र की एकता और अखण्डता को भी बल मिलता है।
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