मंडी (एमबीएम न्यूज़) : देश भर में कई लोग ऐसे भी हैं जो अपनी पहचान के लिए कभी काम नहीं करते, बल्कि उनके द्वारा किया गया काम ही उनकी पहचान बन जाता है। कुछ ऐसी ही कहानी है मंडी जिला के बग्गी गांव निवासी सुरेंद्र मोहन गुप्ता की। सुरेंद्र मोहन गुप्ता को हाल ही में भारत सरकार ने राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है। आप भी जानिए सुरेंद्र मोहन की सफलता की कहानी।
जिला की बल्हघाटी के तहत आने वाली ग्राम पंचायत बग्गी के निवासी सुरेंद्र मोहन गुप्ता आज किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। वर्ष 1980 में बीएससी ग्रेजुएट करने के बाद सुरेंद्र मोहन गुप्ता ने अपने दम पर लकड़ी से तेल निकालने का उद्योग स्थापित किया। उन दिनों में सुरेंद्र मोहन गुप्ता देवदार के कटे हुए पेड़ों के बचे हुए ठूंठों से तेल निकालने की तरकीब जानते थे। उनकी इसी तरकीब ने उन्हें पहचान दिलाई और देखते ही देखते सुरेंद्र मोहन गुप्ता का यह कारोबार खूब फल फूलने लगा।
आज सुरेंद्र मोहन गुप्ता के इसी क्षेत्र में चार उद्योग कार्य कर रहे हैं जिनके माध्यम से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से करीब 200 लोगों को रोजगार मिला है। मात्र 30 हजार रूपए से शुरू किए गए उद्योग का आज सालाना 8 करोड़ का टर्नओवर है। यही नहीं सुरेंद्र मोहन गुप्ता के उद्योगों में बने उत्पाद देश सहित 35 विदेशी देशों में अपनी धाक जमा चुके हैं।
सुरेंद्र मोहन गुप्ता को हाल ही में भारत सरकार ने पंजाब के लुधियाना में आयोजित समारोह में क्वालिटी प्राडक्टस इन फिल्ड आफ नेचुरल फ्रेग्रेंस एंड फ्लेवर के राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया है। यह पुरस्कार देश में सिर्फ एक ही उद्यमी को दिया जाता है। हालांकि सुरेंद्र मोहन गुप्ता को यह पुरस्कार केंद्रीय सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्री कलराज मिश्र के हाथों मिला लेकिन इस समारोह में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी मौजूद थे।
इस वक्त सुरेंद्र मोहन गुप्ता अपने बेटे और भतीजों के साथ मिलकर हरी इंडस्ट्री, संत भामा एंटरप्राईजिज, हिमालयन हर्बल प्राडक्ट और नेचुरल बायोटेक प्राडक्ट के नाम से चार उद्योगों का संचालन कर रहे हैं। जो परफ्यूम, तेल, साबुन, धूप और अगरबती आप अपने घरों में इस्तेमाल करते हैं उनकी खुशबू देने का कार्य इनके यही चार उद्योग करते हैं। मजेदार बात तो यह है कि इनके द्वारा तैयार किए जा रहे नेचुरल आयल और फ्रेग्रेंस का इस्तेमाल मैगी जैसी खाने की वस्तुओं में भी किया जा रहा है।
यहां बनने वाला आयल और फ्रेग्रेंस त्वचा के लिए पूरी तरह से सुरक्षित है, क्योंकि यह पूरी तरह से नेचुरल है और इसमें किसी भी प्रकार के कैमिकल का इस्तेमाल नहीं होता। सुरेंद्र मोहन के उद्योगों में अभी देवदार की लकड़ी से तेल, बरे, फुलणू, मुस्कबाला, जंगली भेड़ा और बनहल्दर के पौधों से खुशबू बनाने का कार्य किया जा रहा है।
सुरेंद्र मोहन गुप्ता ने अपने उद्योगों में अब लैबोरेट्री भी स्थापित कर दी हैं, जहां पर तरह-तरह के प्रयोग करके नए नए प्रकार की खुशबुओं को तैयार किया जा रहा है। इसके साथ ही इन्होंने धूप और अगरबती बनाने का कारखाना भी शुरू कर दिया है और यह कारोबार भी खूब फल फूल रहा है। सुरेंद्र मोहन गुप्ता मानते हैं कि अब उनका बेटा इस कार्य को नई तकनीक के साथ आगे बढ़ा रहा है जबकि इस कार्य में उनका भी पूरा सहयोग और योगदान है।
सुरेंद्र मोहन गुप्ता ने कभी पहचान बनाने के लिए कार्य नहीं किया, लेकिन आज उनके द्वारा किया जा रहा कार्य देश सहित विश्व के 35 देशों में उनकी पहचान बना चुका है। सुरेंद्र मोहन गुप्ता उन लोगों के लिए एक मिसाल हैं जो अपनी ही प्राकृतिक संपदा का दोहन किए बिना सिर्फ सरकारों की तरफ ताक लगाए बैठे रहते हैं। सुरेंद्र मोहन गुप्ता ने आज दिन तक कोई सरकारी मदद नहीं ली बल्कि उल्टा सरकारों को ही अपने उत्पादों के माध्यम से सहयोग किया है।