देहरादून, 5 अप्रैल : आजकल उत्तराखंड (Uttrakhand) के पहाड़ मौसम बदलने के साथ-साथ सियासी गर्मी से तपने लगे हैं। पांच संसदीय सीटों वाले उत्तराखंड राज्य में हर बार की तरह इस बार भी चुनावी घमासान रोचक होने जा रहा है। प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा का संगठन काफी मजबूत है। वहीं, कांग्रेस एक-दो सीटों को छोड़कर संगठनात्मक रूप से विभिन्न चुनौतियों से जूझ रही है।
उत्तराखंड की सबसे हाॅट माने जाने वाली पौड़ी गढ़वाल सीट पर भाजपा व कांग्रेस में सीधी जंग है। यहां भाजपा ने अनिल बलूनी को उम्मीदवार बनाया है। बलूनी भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तौर पर काफी पहचान बना चुके हैं। उनके साथ दिक्कत यह है कि वह अधिकतर दिल्ली में रहते हैं। बलूनी के पक्ष में सकारात्मक बात ये है कि पौड़ी गढ़वाल (Pauri Garhwal) की सभी विधानसभा सीटों पर भाजपा के एमएलए (MLA) जीते हैं। यहां कांग्रेस अपना खाता नहीं खोल पाई थी।
कांग्रेस के साथ कई दुश्वारियां हैं। पांच साल तक पूर्व प्रत्याशी रहे मनीष खंडूरी ऐन समय पर चुनाव लड़ने को तैयार नहीं हुए। पार्टी को गणेश गोंदियाल को मैदान में उतारना पड़ा। गोंदियाल ने 1982 में हुए लोकसभा उप चुनाव की तर्ज पर स्व. हेमवंती नंदन बहुगुणा की तरह अनिल बलूनी पर दिल्ली में ही रहने का आरोप लगाकर मतदाताओं में थोड़ी पैठ बनाई हैै। उन्हें यहां कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। बलूनी के मुकाबले गणेश गोंदियाल के पास संसाधनों की भी कमी है। मगर, गोंदियाल ने बलूनी के समक्ष स्थानीय न होने का नारा देकर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है।
टिहरी गढ़वाल सीट पर निर्दलीय उतरे बाॅबी पंवार ने मुकाबले को तिकोना बना दिया है। उन्हें यूकेडी (UKD) यानि उत्तराखंड क्रांतिदल का समर्थन भी मिल रहा है। पिछले 15 साल से यहां भाजपा की राजमाता माला राज्य लक्ष्मी शाह सांसद हैं। वहीं, कांग्रेस ने 70 पार कर चुके जोत सिंह गुनसोला को अपना उम्मीदवार बनाया है। कांग्रेस और भाजपा दोनों के उम्मीदवार वित्तीय संसाधनों से परिपूर्ण हैं, मगर बॉबी पंवार के पक्ष में उनका हौसला व जन समर्थन चुनाव को दिलचस्प बना रहा है। देखना है कि इस बार टिहरी की जनता राज परिवार के साथ जाती है या स्थानीय आम आदमी संसद की चौखट पार करेगा।
दूसरी हाॅट सीट माने जाने वाली हरिद्वार सीट पर उत्तराखंड के दो राजनीतिक घरानों के बीच जंग है। वहीं, एक और निर्दलीय विधायक रहे उमेश कुमार मुकाबले को तिकोना बना रहे हैं। यहां से भाजपा ने अपने पूर्व मुख्यमंत्री रहे त्रिवेंद्र रावत को टिकट दिया है। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत के पुत्र वीरेंद्र रावत को चुनावी रण में उतारा है। वीरेंद्र रावत के कैरियर का यह पहला चुनाव है।
हरिद्वार संसदीय सीट का कुछ हिस्सा मैदानी है, जहां निर्दलीय उम्मीदवार उमेश कुमार की पकड़ काफी अच्छी मानी जाती है। उन्होंने खानपुर से विधानसभा चुनाव भी एक हैवीवेट कैंडिडेट को हराकर जीता था। रावत घरानों की प्रतिष्ठा इस समय दांव पर है। बसपा ने यहां इस बार कैंडिडेट नहीं उतारा हैै। जो उम्मीदवार बसपा के वोटों में सेंध लगाएगा, उसे लाभ मिल सकता है, क्योंकि यहां मैदानी क्षेत्रों में बहुजन समाज का अच्छा वोट बैंक है।
हिमाचल की ताजा खबरों के लिए ज्वाइन करें हमारा WhatsApp चैनल
अल्मोड़ा (सुरक्षित) सीट पर भाजपा ने केंद्र में दो बार राज्य मंत्री रहे अजय टमटा को फिर से उम्मीदवार बनाया है। वहीं, कांग्रेस ने प्रदीप टमटा को चुनावी मैदान में उतारा है। हालांकि, अजय टमटा लंबे समय तक मंत्री रहे हैं, मगर एंटी इनकमबंसी (anti incumbency) के चलते उन्हें प्रदीप से चुनौती मिल रही है। यहां चुनाव काफी रोचक होगा। कांग्रेस के दिग्गज नेता यशपाल आर्य के भी यहां से चुनाव लड़ने की चर्चा थी। मगर ऐन वक्त पर उन्होंने चुनाव लड़ने से किनारा कर लिया। यहां कांग्रेस संगठन की स्थिति अच्छी नहीं है। इसका फायदा भाजपा को मिल रहा है।
भाजपा में एक और केंद्रीय मंत्री रहे अजय भट्ट नैनीताल से फिर मैदान में हैं। भट्ट पिछली दो सरकारों में रक्षा व टूरिज्म जैसे मंत्रालयों के मंत्री रहे हैं। मगर, अपने कार्यकाल के दौरान नैनीताल में ज्यादा विकास नहीं करवा पाए। कांग्रेस ने यहां प्रकाश जोशी को टिकट दिया है। अजय भट्ट केंद्र सरकार में काफी प्रभावशाली मंत्रालयों के मंत्री रहे। मगर, अपने संसदीय क्षेत्र के लिए उनका योगदान ज्यादा नहीं रहा। टूरिज्म के क्षेत्र में नैनीताल की स्थिति आज भी पहले जैसे ही है।
वहीं, कांग्रेस के प्रत्याशी प्रकाश जोशी कालाडूंगी विधानसभा क्षेत्र से दो बार चुनाव लड़ चुके हैं, मगर दोनों बार उन्हें हार मिली। वह प्रदेश कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से मतभेद के चलते लंबे समय से चर्चाओं में रहे हैं। उन्हें राहुल गांधी का करीबी माना जाता है। यहां चुनाव काफी रोचक होगा, क्योंकि अजय भट्ट को एंटी इनकमबंसी के चलते काफी मेहनत करनी पड़ रही है। वहीं, कांग्रेस प्रत्याशी को लोकसभा चुनाव लड़ने का अनुभव नहीं है।
कुल मिलाकर उत्तराखंड में फिलहाल भाजपा कांग्रेस से प्रचार में बित्ता भर आगे है। @A1