सोलन, 25 नवंबर : हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक क्षेत्र बद्दी में चंद रोज से नकली दवाओं का उत्पादन करने वाली एक फर्जी कंपनी के भंडाफोड़ से राज्य का ड्रग विभाग अपनी पीठ थपथपा रहा है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि विभाग के नाक तले ऐसी फर्जी फार्मा कंपनियां कैसे पनप जाती है।
उत्तर प्रदेश के तीनों आरोपियों ने बद्दी में ट्रेजल फॉर्मुलेशन नाम से एक फर्जी कंपनी खोल ली। उद्योग विभाग व प्रदूषण और बिजली बोर्ड की एनओसी नहीं थी। ड्रग विभाग को भनक नहीं थी। मौजूदा में लकीर का फ़क़ीर बनकर विभाग आरोपियों से ये जानना चाहता है कि नकली दवाओं कहां-कहां बेचा गया है। आशंका ये है कि नकली दवा कारोबार के मामले में हाथ लंबे हो सकते हैं। ये कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले भी इस तरह की कई घटनाएं सामने आ चुकी हैं।
विभाग एशिया के सबसे बड़े फार्मा हब में अब तक ऐसी प्रणाली को विकसित नहीं कर पाया है, जिससे नकली दवाओं के उत्पादन पर जीरो टॉलरेंस (Zero Tolerance) हो जाये। इसमें भी कोई दो राय नहीं है कि बार-बार नकली दवाओं (counterfeit drugs) के गिरोह का भंडाफोड़ होने से फार्मा हब की साख पर भी सवाल उठते हैं। बद्दी में देश का 30 फीसदी दवाओं का उत्पादन होता है। प्रश्न इस बात पर भी पैदा होता है कि फ़र्ज़ी उद्योगों के सतह पर आने के बाद क्यों विभाग के अधिकारियो से जवाब तलबी नहीं की जाती है।
कालाअंब के एक फार्मा उद्योग द्वारा सप्लाई की गई दवाओं से तो जम्मू में मासूम बच्चों की जान तक चली गई थी। बावजूद इसके ड्रग विभाग ने कोई ऐसा तरीका नहीं अपनाया है, जिससे फर्जी दवाओं के साथ-साथ घटिया दवाओं के उत्पादन पर नकेल कसी जा सके। बता दें कि बद्दी में ही राज्य ड्रग कंट्रोलर का कार्यालय भी है। पहले विभाग ड्रग इंस्पेक्टर की कमी का तर्क दिया करता था, लेकिन मौजूदा में बद्दी क्षेत्र के अलावा कालाअंब व पांवटा साहिब क्षेत्रों में ड्रग इंस्पेक्टर की कमी नहीं है।
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हैरानी इस बात की है कि एक फर्जी कंपनी प्रोडक्शन कर रही है, लेकिन इसकी भनक लंबे अरसे तक विभाग को नहीं लगती है। हालांकि ताजा घटनाक्रम में ड्रग विभाग ने तेजल फॉर्मूलेशन कंपनी को सील कर दिया है। आपको बता दें कि अक्सर ही हिमाचल में बनने वाली दवाइयों के सैंपल दूसरे राज्यों में फेल होने के बाद प्रदेश का द्रव्यमान हरकत में आता है।
एक अहम बात यह भी है कि ड्रग विभाग में लंबे अरसे से एक अधिकारी जहां टाटा हुआ है। वहीं घटा रहता है। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या विभाग के शीर्ष अधिकारी समय-समय पर फार्मा उद्योगों की गुणवत्ता व दस्तावेजों की पड़ताल करते हैं या नहीं या फिर दफ्तरों में बैठकर ही लाइसेंस जारी किए जाते हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि बद्दी में पकड़ी गई नकली दवाओं के गोरखधंधे में ड्रग विभाग ने वीरवार को पूरा दिन कार्रवाई जारी रखी।
खास बात यह है कि औद्योगिक क्षेत्र में एक उद्योग स्थापित कर दिया जाता है। इसमें बकायदा मशीनरी भी लगती है। माल को ट्रांसपोर्ट भी किया जाता है, लेकिन राज्य दवा नियंत्रक प्राधिकरण के अधिकारियों को भनक तक नहीं लगती है। मौजूदा में समूचे विभाग ने नकली दवाओं की कंपनी पर पूरा ध्यान फोकस किया हुआ है। लेकिन इस बात के सवाल का जवाब भी तलाश किया जा रहा है कि आखिर ऐसी कंपनियां औद्योगिक क्षेत्र में विभाग के नाक तले कैसे पनप जाती है। प्रश्न यह भी पैदा होता है कि क्या सरकार को सिस्टम में बदलाव करने पड़ेंगे ताकि प्रदेश को ऐसे शर्मसार कृत्य का सामना दोबारा न करना पड़े।
हर बार की तरह इस बार भी ड्रग विभाग के एक्शन पर ही ध्यान केंद्रित हो गया है, लेकिन विभाग की अपनी तू कहां है इसको लेकर कोई जवाब तलबी अधिकारियों से नहीं किया जा रहा है। इसमें कोई दो राय नहीं होनी चाहिए कि अगर ड्रग विभाग मुस्तैदी से कार्य करें तो मजा नहीं है कि इस तरह के फर्जी उद्योग प्रदेश के भीतर पर किये जाए जिसके लिए बाद में प्रदेश को शर्मसार होना पड़े। फिलहाल एमबीएम न्यूज नेटवर्क के पास इस मामले में बद्दी के ड्रग कंट्रोलर नवनीत मारवा का पक्ष उपलब्ध नहीं है, लेकिन लिखित तौर पर मिलने की स्थिति में विभाग का पक्ष भी प्रमुखता से प्रकाशित किया जाएगा।