शिमला, 10 नवंबर : मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के गृह जिला की धर्मपुर सीट सिराज के बाद सबसे चर्चित है। सरकार में नंबर-2 मंत्री रहे महेंद्र सिंह ठाकुर के पुत्र रजत ठाकुर पहली बार भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं। रिमोट निर्वाचन क्षेत्र धर्मपुर से भाजपा के तेजतर्रार मंत्री महेंद्र सिंह इस बार 1990 के बाद पहली दफा प्रत्यक्ष रूप से चुनाव मैदान में नहीं हैं। बल्कि बेटे को विरासत सौंपी है।
महेंद्र सिंह 1990 से 2017 तक सात दफा लगातार इस सीट से कांग्रेस, बीजेपी, हिविकां, लोकतांत्रिक मोर्चा हिमाचल प्रदेश (LMHP) के टिकट के अलावा 1990 में निर्दलीय रूप से विधानसभा में दाखिल हुए थे। लोक निर्माण, जल शक्ति व बागवानी जैसे मंत्रालय संभाल चुके महेंद्र सिंह ने यहां अपने आगे किसी नेता को नहीं टिकने दिया। इस दफा उम्र की दुहाई देकर भाजपा ने बेटे रजत ठाकुर को चुनावी मैदान में उतारने का फैसला लिया।
भाजपा धर्मपुर में ठाकुर के अस्तित्व को नकार नहीं पाई है। परिवारवाद से परहेज का राग अलापने वाली पार्टी इतना मजबूर थी कि उनकी लोकप्रियता को दरकिनार नहीं कर पाई। वहीं कांग्रेस ने युवा प्रत्याशी चंद्रशेखर को फिर से चुनावी मैदान में उतारा है। कांग्रेस व भाजपा के के मध्य सीधा मुकाबला है। दोनों को किसी भी प्रकार की बगावत का सामना नहीं करना पड़ रहा है। ये अलग बात है कि महेंद्र सिंह ठाकुर की बेटी वंदना गुलेरिया ने बगावत के सुर ये कह कर अपना लिए थे कि पिता की विरासत बेटे को क्यों मिलती है, हालांकि बाद में भैया दूज के अवसर भाई व बहन ने गिले शिकवे दूर कर लिए थे।
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वर्ष 2012 में चंद्रशेखर को महेंद्र सिंह ने 1041 वोटों के नजदीकी मुकाबले में हराया था। महेंद्र सिंह ठाकुर हारते-हारते बचे थे। चंद्रशेखर भी काफी मजबूत उम्मीदवार हैं। इसलिए पूरे प्रदेश की नजरें धर्मपुर पर टिकी हुई हैं।
क्या है राजनीतिक इतिहास….
निर्वाचन क्षेत्र से भीखम राम 1972 में निर्दलीय विधायक बने थे। 1977 की जनता लहर में जनता पार्टी के ओम चंद ने उन्हें हरा दिया। मगर 1982 में भीखम राम कांग्रेस के टिकट पर दोबारा चुनाव जीते। 1985 में कांग्रेस ने यहां से दिवंगत वीरभद्र सिंह के खासमखास नत्था सिंह को टिकट दिया, जो चुनाव जीत गए। लेकिन, 1990 में महेंद्र सिंह ने पहली मर्तबा निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत कर विधानसभा में प्रवेश किया। इसके बाद उन्होंने 2017 तक पीछे मुड़कर नहीं देखा।
1993 में महेंद्र सिंह कांग्रेस के टिकट पर तमाम विरोध के बावजूद जीतने में सफल रहे। दिवंगत वीरभद्र सिंह उन्हें हमेशा राजनीतिक हाशिए पर धकेलने का प्रयास करते रहे,, जिसकी वजह से 1998 में वह पंडित सुखराम की पार्टी हिविकां से जीत कर प्रदेश की भाजपा-हिविकां गठबंधन सरकार में लोक निर्माण जैसे महत्वपूर्ण महकमे के मंत्री बने।
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राजनीतिक गलियारों में आज तक ये चर्चा है कि उन्होंने लोक निर्माण मंत्री रहते हुए अपने हलके के लोगों को उनकी शैक्षणिक योग्यता के अनुसार थोक में सरकारी नौकरियों में भर्ती किया। भाजपा सरकार की मजबूरी थी कि हिविकां के समर्थन से बनने वाली सरकार महेंद्र सिंह की तमाम मनमर्जियों पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता था।
इसके बाद 2003 में महेंद्र सिंह एलएमएचपी के टिकट पर विधानसभा पहुंचे। 2007 में महेंद्र सिंह भाजपा के टिकट से विधानसभा पहुंचे। 2012 में महेंद्र सिंह पुनः बीजेपी के टिकट पर जीते। 2017 में अपनी अंतिम पारी में उन्होंने 20-20 मैच की तर्ज पर शानदार फिनिशिंग करते हुए इस बार बेटे रजत ठाकुर को चुनावी मैदान उतार दिया।
देखना है कि जैसे महेंद्र सिंह का जादू लोगों के सिर चढ़ कर बोलता था क्या वो पुत्र के लिए भी ऐसा बहुमत हासिल कर पाएंगे। महेंद्र सिंह ठाकुर ने जो लोकप्रियता हासिल की थी, उसमें एक बार वो हारते-हारते भी बचे। जिस उम्मीदवार ने उन्हें नाकों चने चबवाए, वहीं कांग्रेस के चंद्रशेखर अब उनके पुत्र के सामने चुनावी मैदान में हैं।
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आंकड़ों में धर्मपुर विधानसभा….
1998 में हिविकां के टिकट पर महेंद्र सिंह ने 39.06 प्रतिशत मत हासिल कर वीरभद्र सिंह के खासमखास कांग्रेसी उम्मीदवार नत्था सिंह को हराया। संघर्ष नजदीकी था, नत्था सिंह भी 36.97 प्रतिशत मत हासिल करने में सफल रहे। 2003 में महेंद्र सिंह ने लोकतांत्रिक मोर्चा के टिकट पर कांग्रेस के नत्था सिंह को तीसरे स्थान पर धकेल दिया। उन्हें 37.25 प्रतिशत मत मिले। भाजपा के कर्मवीर को 28.61 प्रतिशत वोट मिले व कांग्रेस के नत्था सिंह को मात्र 21.44 प्रतिशत मत हासिल हुए।
2007 में महेंद्र सिंह का जलवा बरकरार रहा। कांग्रेस ने इस दफा नए उम्मीदवार चंद्रशेखर को मैदान में उतारा। मगर इस बार फिर महेंद्र सिंह करीब 50.66 प्रतिशत मत हासिल हुए। 34 साल की उम्र में चंद्रशेखर 34 पहला चुनाव लड़ रहे थे,चुनाव में उन्हें 29.07 प्रतिशत मत हासिल हुए। 2012 में मुकाबला बहुत नजदीकी हुआ। इस चुनाव में महेंद्र सिंह हारते-हारते बचे। उन्हें 46.65 प्रतिशत तो चंद्रशेखर को 47.05 प्रतिशत वोट हासिल हुए। 2017 में महेंद्र सिंह ने तमाम पिछले रिकाॅर्ड तोड़ते हुए 57.68 प्रतिशत वोट हासिल कर बंपर जीत हासिल की। चंद्रशेखर को इस बार 32.97 प्रतिशत वोटों पर संतोष करना पड़ा।
भाजपा प्रत्याशी रजत ठाकुर करोड़ों के मालिक
मंडी की धर्मपुर विधानसभा सीट पर रजत ठाकुर भाजपा की टिकट पर पहली किस्मत आजमा रहे हैं। वह मौजूदा भाजपा विधायक व कैबिनेट मंत्री महेंद्र सिंह के सुपूत्र हैं। 45 वर्षीय रजत ठाकुर के पास अकूत संपत्ति है। वह 9.78 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। चुनावी हलफनामे में उन्होंने अपने परिवार की चल संपत्ति 4.28 करोड़ और अचल संपत्ति 5.50 करोड दिखाई है। उनके पास तीन टिप्पर, तीन जेसीबी और दो लग्जरी कारें हैं।
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इसके अलावा उनके नाम एक होटल भी है। अचल संपत्ति में उनके नाम सुजानपुर में गैर कृषि भूमि, हमीरपुर में व्यवसायिक भवन है। रजत ठाकुर के पास 1.75 करोड़ और पत्नी के पास 3.75 करोड़ की अचल संपत्ति है। जबकि 3.98 करोड़ की चल और पत्नी की 30.77 लाख की चल संपत्ति है। रजत ठाकुर पर 18.38 लाख की देनदारियां भी हैं। उन्होंने वर्ष 1999 में हिमाचल प्रदेश विवि से बीए की पढ़ाई की है।
कांग्रेस के चंद्रशेखर के पास 46 लाख की संपत्ति
धर्मपुर सीट पर भाजपा के करोड़पति प्रत्याशी को टक्कर देेने वाले कांग्रेस के चंद्रशेखर के पास 46 लाख की संपत्ति है। चुनावी हलफनामे में 49 वर्षीय चंद्रशेखर ने अपने परिवार की चल संपत्ति 15.99 लाख और अचल संपत्ति 30 लाख दर्शाई है। उनके नाम 11.51 लाख और पत्नी के नाम 4.48 लाख की चल संपत्ति है। चंद्रशेखर के पास एक लाख और उनकी पत्नी के पास चार लाख के गहने हैं। उनके पास एक ईनोवा कार भी है। चंद्रशेखर ने 4.22 लाख का वाहन लोन भी लिया है। उन्होंने प्रदेश विवि से कानून की पढ़ाई की है।
सबल व निर्बल पक्ष….
भाजपा के रजत ठाकुर का सबल पक्ष ये है कि उन्हें पिता महेंद्र सिंह से विरासत में परंपरागत वोट बैंक मिला है। साथ ही उनके पिता जनसभाओं में भावुक होकर अपने पुत्र के पक्ष में हवा बना रहे हैं। एक जनसभा में पिता-पुत्र आंसू नहीं रोक पाए। वहीं, निर्बल पक्ष में रजत विधानसभा क्षेत्र के लोगों के लिए नए हैं। भाजपा के पुराने कार्यकर्ताओं में अंदरखाते इस बात को लेकर भी रोष है कि उन्हें चुनाव लड़ने का मौका नहीं मिला। परिवारवाद जहां सबल पक्ष है, वहां कहीं-कहीं व निर्बल भी साबित हो रहा है।
वहीं, कांग्रेस के उम्मीदवार चंद्रशेखर पिछले 15 सालों से लगातार चुनावी मैदान में महेंद्र सिंह का मुकाबला करते रहे। तमाम दबाव के बावजूद वह महेंद्र सिंह से नहीं घबराए। एक बार 2012 में उन्होंने मुकाबला काफी नजदीकी बना दिया था। इस दफा वह पिछली हारों को सहानुभूति लहर के रूप में भुना रहे हैं। उनकी छवि जनता में अच्छी मानी जाती है। लगातार लोगों के संपर्क में रहे। निर्बल पक्ष में महेंद्र सिंह की पुराने बुजुर्गों पर पकड़, उनके द्वारा करवाए गए विकास कार्य व लोगों को दिया गया रोजगार आड़े आ रहा है।