शिमला, 21 अगस्त : वैसे तो समूचे देश में आजादी (Independence) की 75वीं वर्षगांठ को हर भारतीय अपने अंदाज में मनाने की कोशिश कर रहा है। मगर जैसा हिमाचल के कांगड़ा प्रशासन ने किया है, वो स्वर्णिम इतिहास(History) बना है। देश व दुनिया से अलग-थलग इलाका है ‘‘बड़ा भंगाल’’। आम वही शख्स, इस जगह तक पहुंचने की सोच सकता है, जिसे पर्वतारोहण (Mountaineering) का तजुर्बा हो। खैर, अगर भारतीय सेना को ये टास्क दिया जाता तो अलग बात थी, लेकिन यहां तो सामान्य प्रशासन ने आजादी के अमृत महोत्सव को यादगार बना दिया है। खबर का शीर्षक पढ़कर आपके मन में उथल-पुथल हो रही होगी कि भई ऐसा क्या हो गया।
चलिए बताते हैं….
दरअसल, बैजनाथ में तैनात एसडीएम सलीम आजम को पर्वतारोहण का तजुर्बा है। वो एवरेस्ट के बेस कैंप तक भी एक मर्तबा पहुंचे हैं। उपायुक्त निपुण जिंदल (IAS Nipun Jindal) की मौजूदगी में आयोजित बैठक में विचार कौंधा कि क्यों न इस बार बड़ा भंगाल में आजादी की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर उपमंडल स्तरीय कार्यक्रम आयोजित किया जाए। एसडीएम ने इस पर हामी भरने में तनिक भी देरी नहीं की। उपायुक्त ने भी इतिहास बनाने के लिए पूरा ताना-बाना बुन दिया।
उपायुक्त ने सुझाव दिया कि प्रशासन पहली बार बड़ा भंगाल में जनता के द्वार कार्यक्रम को आयोजित कर लिया जाए। इसके बाद सवाल तैर उठा कि हरेक विभाग के प्रतिनिधियों को कठिन ट्रैकिंग (Tracking) के जरिए वहां तक कैसे पहुंचाया जाएगा। लगभग एक महीने पहले ही पांच चिकित्सकों सहित 40 सदस्य टीम बना ली गई। इसमें 5 पोटर्स भी शामिल किए गए। इस बात का ध्यान रखा गया कि केवल यंग व मेडिकली फिट लोग ही टीम में शामिल किए जाएं।
एसडीएम सलीम आजम ने टीम के तमाम सदस्यों को रोजाना कसरत व फिटनेस का उचित ध्यान देने का आग्रह किया, क्योंकि बड़ा भंगाल तक पैदल पहुंचने के लिए एक रास्ते से लगभग 47 किलोमीटर की ऐसी दुर्गम ट्रैकिंग करनी थी कि मामूली चूक की भी गुंजाइश नहीं थी। टीम के हरेक सदस्य को इस बात से भी अवगत करवा दिया गया था कि आने-जाने में एक सप्ताह का वक्त लगेगा। वहां न तो लाइट है और न ही फोन की कोई सुविधा। पंचायत सचिव के पास केवल सैटेलाइट फोन ही है। चूंकि टीम ने बड़ा भंगाल पहुंचने के लिए चंबा के होली वाले मार्ग को चुना था, जो न केवल खतरनाक है, बल्कि एक गलत कदम रावी नदी में पहुंचा सकता है। पूरे ट्रैक पर रास्ता नाम की कोई चीज नहीं है। 40 सदस्यों को दो अलग-अलग टीमों में बांटा गया था। ये सफर 11 अगस्त को शुरू हुआ और 19 अगस्त को समाप्त हुआ।
ऐसे हुआ आजादी का जश्न…
गांव की आबादी लगभग 630 है। इसमें 500 मतदाता हैं। हरेक सदस्य के चेहरे पर एक ऐसी मुस्कान थी, जो शायद उन्हें आजादी के बाद पहली बार नसीब हुई होगी। उपमंडलीय स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम में जब एसडीएम ने तिरंगा फहराया तो बड़ा भंगाल के हरेक व्यक्ति की नजर तिरंगे ( Tricolor) की तरफ ही टिकी हुई थी। एसडीएम ने उपायुक्त निपुण जिंदल द्वारा बड़ा भंगाल पंचायत के लिए स्वीकृत 15 लाख रुपए की राशि की भी घोषणा की। इसके जरिए अब घरों के कलस्टर बनाकर सौर उर्जा से बिजली उपलब्ध करवाई जाएगी। साथ ही रास्तों का भी निर्माण होगा। बड़ा भंगाल (Bara bhngal) के 91 वर्षीय मूलचंद ने प्रशासन जनता के द्वार कार्यक्रम में पैंशन से जुड़ी समस्या से एसडीएम को अवगत करवाया। उल्लेखनीय है कि बर्फबारी में इस इलाके तक पैदल पहुंचना भी मुमकिन नहीं होता।
ये बोले एसडीएम…. आजादी की 75वीं वर्षगांठ को अपने अंदाज में मनाने के अनुभव की चर्चा एसडीएम सलीम आजम ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क से की। उनका कहना था कि बड़ा भंगाल तक पहुंचने में तीन दिन का वक्त लगा। टीम के हरेक सदस्य का चयन लगभग एक महीने पहले ही कर लिया गया था। चंबा के होली के नयाग्रां से बड़ा भंगाल की दूरी 47 किलोमीटर है। बीच में एक दर्रा भी पड़ता है, जो काफी चुनौतीपूर्ण (challenging) रहता है। उन्होंने कहा कि वो इस बात को लेकर बेहद ही खुश थे कि गांव वालों ने 40 सदस्यों की टीम की तीन दिन तक मेहमानवाजी में कोई कमी नहीं आने दी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने बताया कि अब तक इस इलाके से दो-तीन लोग ही सरकारी नौकरी हासिल कर सके हैं।
इत्तफाकन ये इलाका अनुसूचित जनजाति में भी नहीं है। उन्होंने कहा कि गांव के युवा बीड़ में जाकर पैराग्लाइडिंग को भी अपने व्यवसाय से जोड़ चुके हैं। वो टैंडम फ्लाइट में माहिर हैं। सर्दियों के समय 50 से 70 लोग ही इस जगह रहते हैं। एसडीएम ने ये भी कहा कि ट्रैकिंग के दौरान 7 प्वाइंट (Seven Points) ऐसे चिन्हित किए गए, जहां मामूली सी गलती से जान बचने की कोई गुंजाइश नहीं थे।
अवार्ड का हकदार…
चूंकि इस बार केंद्र सरकार आजादी की 75वीं वर्षगांठ को आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है। ऐसी साहसिक टीम का एक प्रशस्ति पत्र तो बनता ही है। राज्य सरकार को स्वतंत्रता दिवस के ऐसे कार्यक्रम की विस्तृत रिपोर्ट (Detailed report) केंद्र सरकार को भेजनी चाहिए। इससे खतरों पर खेलकर आजादी का जश्न मनाने वाली टीम की हौंसला अफजाई होगी।
हेलीपैड तो है, मगर…
बड़ा भंगाल में हैलीपैड तो है, मगर इसकी उड़ान भी आसान नहीं है। दो उंचे पहाड़ों के बीच से उड़ान भरते हुए रावी नदी के किनारे लैंड करना होता है। फ्लाइट के दौरान पायलट को अतिरिक्त सावधानी बरतनी होती है। बताते हैं कि बतौर मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल एक बार बड़ा भंगाल के प्रवास पर गए थे। मगर आजादी के जश्न का इतिहास 15 अगस्त 2021 को लिखा गया है।