नाहन, 29 जून : ऐतिहासिक शहर में लंगूरों ने भी अपना कुनबा बढ़ाना शुरू कर दिया है। हालांकि कुछ अरसा पहले दिल्ली गेट के समीप एक लंगूर लोगों से काफी फ्रेंडली नजर आता था। लेकिन अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि जंगलों से लंगूर भी शहर की तरफ कदम बढ़ा चुके हैं।
सोमवार को कालीस्थान तालाब के किनारे पीपल के पेड़ पर नर व मादा लंगूर के अलावा एक बच्चा भी अठखेलियां करता नजर आ रहा था। जब तक लंगूर का परिवार पीपल के पेड़ पर मौजूद रहा, तब तक बंदर उस पेड़ पर नहीं फटक रहे थे। तस्वीरों को कैमरे में कैद करने वाले प्रदीप ने बताया कि उन्होंने काफी देर तक इन लंगूरों की गतिविधियों पर नजर बनाए रखी। शहर में बंदरों की समस्या दशकों पुरानी है। चुनाव में इस समस्या से निपटने के कई वायदे किए जाते रहे, लेकिन धरातल पर बंदरों की आबादी लगातार बढ़ती रही।
अब अगर शहर में लंगूरों की संख्या भी बढ़ी तो लाजमी तौर पर शहरवासियों की समस्या भी दोगुनी हो जाएगी। कई मर्तबा बंदरों की तुलना में लंगूर अधिक खतरनाक साबित हो सकते हैं। लंगूरों के कई डरावने किस्से पिछले कुछ सालों में परवाणु व शिमला के आसपास से सामने आ चुके हैं। जानकारों की मानें तो बंदरों के भी इलाके होते हैं। दूसरी टोली को अपने इलाके में दाखिल होने पर आक्रामक हो जाते हैं। हालांकि एक बात यह भी कही जाती है कि लंगूरों की मौजूदगी से बंदर भाग जाते हैं। लेकिन अगर ये दोनों ही प्रजातियां फ्रैंडली हो गई तो निश्चित तौर पर शहर की समस्या बढ़ने के संकेत हैं।
बता दें कि नाहन में एक अरसे से घरों में लोहे के जाल लगवाने का चलन बढा है। इसे अपडेट कर अब लोग स्टील की फ्रेमिंग भी करवाने लगे हैं, ताकि बंदर घरों में न घुसे। उल्लेखनीय है कि करीब एक से दो साल पहले परवाणु में एक लंगूर दुधमुंहे बच्चे को लेकर पेड़ पर चढ़ गया था। फिलहाल शहर के बाहरी इलाके में लंगूर नजर आने लगे हैं। इनकी मौजूदगी केवल ऐसी जगहों पर पाई जा रही है जहां बड़े-बड़े दरख्त हैं।