बिलासपुर, 9 जून : हिमाचल की सबसे बड़ी कृत्रिम झील गोविंदसागर में 100 किलो वजनी मछली भी मिल चुकी है। मगर कोविड काल में ऐसा पहली बार हुआ है। इसके अलावा एक हटकर बात ये है कि 35 से 37 किलो के बीच की एक नहीं, बल्कि ढेर मछलियां मिली हैं। इतनी वजनी एक मछली को पकड़ने के लिए चार-चार लोगों की मदद लेनी पड़ी।
आपके जहन में एक सवाल अवश्य ही उठेगा कि आखिर एक साथ इतनी मछलियां कैसे जाल में फंस गई। अगर फिश ठेकेदार रिंपू कोहली की मानें तो पिछले चंद रोज से तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। पानी के भीतर गर्मी में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है। इसी कारण ये ऑक्सीजन हासिल करने की कोशिश में सतह पर भी नजर आने लगती हैं। पकड़ी गई मछलियों की प्रजाति सिल्वर कार्प है। बता दें कि मछलियों को पकड़ने के लिए भाखड़ा डैम काफी मशहरू हैं। यहां पाई जाने वाली प्रजातियों की लोगों में खासी डिमांड रहती है।
कोहली की मानें तो झील में मछलियों को पकड़ने के बाद नाव में ठिकाने तक लाने में भी खासी मशक्कत का सामना करना पड़ता है। बोट चालक व मछुआरों को अक्सर ही इतनी बड़ी मछलियां पकड़ कर लाने में जान का भी जोखिम उठाना पड़ता है। गौरतलब है कि झील से मछलियां पकड़ने की अनुमति 15 जून तक ही है। इसके बाद मछलियों का प्रजनन शुरू हो जाता है। मछलियों को पकडने पर सरकार प्रतिबंध लगा देती है। 15 अगस्त के बाद प्रतिबंध को हटा दिया जाता है।
ठेकेदार रिंपू कोहली की मानें तो झील में कतला, गुंछ, गोल्डन महाशीर इत्यादि पाई जाती हैं। ताजा मछलियों के सेवन से न केवल रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, बल्कि आंखों की कई बीमारियों का इलाज भी होता है।
अगर ऐसा होता…
अगर 35 से 37 किलो वजनी मछलियों का झुंड मात्र 7 दिन तक जाल के शिकंजे से बच जाता तो उन्हें दो महीने का ओर जीवनदान मिल जाता। दो महीने बाद इनका वजन 50 किलो भी पार हो सकता है। खैर, अब तो वो अपना जीवन खो चुकी हैं। उल्लेखनीय है कि 15 जून के बाद मछलियों को पकड़ने पर प्रतिबंध लग जाएगा।