नाहन,2 मार्च: नोबल अर्थ हयूमन राईट आर्गेनाइजेशन (नेहरो) व उम्मीद फाउंडेशन ने प्रदेश के दुगर्म स्थानों में कार्यरत एसएमसी अध्यापकों के लिए स्थाई नीति बनाने की मांग की है। संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि एसएमसी अध्यापक लंबे अर्से से प्रदेश के दुर्गम स्थानों पर शिक्षा की अलख जलाए हुए हैं। लेकिन, उनका खुद का भविष्य अधर में लटका हुआ है, जो इन अध्यापकों के साथ अन्याय से कम नहीं।
उम्मीद फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रमोद कुमार, प्रबंधक मोबिना व नेहरो के महासचिव जावेद उल्फत व उपाध्यक्ष पंकज तन्हा ने कहा कि दुर्गम स्कूलों में कार्यरत 2630 एसएमसी अध्यापकों के लिए स्थाई नीति बनाई जाए।
वक्ताओं ने कहा कि स्कूलों में 2630 एसएमसी शिक्षक सेवाए दे रहे हैं, जिनमें 775 पीजीटी, 109 डीपीई, 603 टीजीटी, 993 सीएंडवी और 155 जेबीटी अध्यापक शामिल हैं। यह सभी अध्यापक करीब आठ से दस साल से अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लेकिन, कोई भी सरकार एसएमसी अध्यापकों के लिए ठोस नीति नहीं बना पाई है। जबकि सभी अध्यापक आरपीएंड रूल्स के नियमानुसार आरटीई के लिए जरूरी सभी शैक्षणिक योग्यता टैट आदि को पूरा करते हैं।
उन्होंने कहा कि उनकी नियुक्तियां विभाग की अनुमति पर उपमंडलाधिकारी की अध्यक्षता में नियुक्त कमेटी ने की है। कई स्कूल तो सिर्फ एसएमसी अध्यापकों के ही सहारे चल रहे हैं। ऐसे में एक ओर यह एसएमसी अध्यापक जहां दुर्गम क्षेत्रों में अपने बूते पर बच्चों का भविष्य रोशन कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर स्थाई नीति न बनाए आने से इनका खुद का भविष्य अधर में लटका हुआ है। इससे इन अध्यापकों के साथ कई सालों से अन्याय हो रहा है। जिसे अब दूर किया जाना चाहिए।
वक्ताओं ने कहा कि अब, सरकार को चाहिए कि वह पंजाबी व उर्दू अध्यापकों की तर्ज पर एसएमसी अध्यापकों को भी अनुबंध के आधार पर कांट्रेक्ट पॉलिसी पर लाए ताकि उनका भविष्य सुरक्षित हो सके।