नाहन, 28 फरवरी: 400 साल पहले बसे शहर के पूर्वी इलाके में आबादी लेशमात्र ही थी। शहर को विस्तारीकरण (Expansion) की आवश्यकता भी महसूस हो रही थी। रियासत के चौतरफा विकास में रूचि रखने वाले शासक शमशेर प्रकाश ने अनाज मंडी की नींव 1863 (विक्रमी सम्वत् 1920) में रखी।
शहर की मुख्य आबादी व बाजार रियासत के मौजूदा बड़ा चौक (Bara chowk) की तरफ सिमटे हुए थे। शुरूआती दौर में अनाज मंडी का नाम शमशेरगंज रखा गया, लेकिन धीरे-धीरे ये नया बाजार कहलाने लगा। पूर्वी भाग में बाजार का निर्माण करवाने का मकसद ये भी था कि शहर की रौनकदारी बढ़े। साथ ही आबादी भी घनी हो।
शमशेर प्रकाश की एक अदभुत बात ये थी कि वो किसी एक दिशा में रूचि नहीं लेते थे, बल्कि चौतरफा विकास में दिलचस्पी लेते थे। एक रोचक पहलू ये भी है कि जब अनाज मंडी या शमशेरगंज की नींव पड़ी थी, उसी वर्ष में शासक ने कालाअंब से नाहन तक की सड़क को बनवाने का निर्णय भी लिया था। इससे पहले नाहन में गाड़ी नहीं आ सकती थी। इस कारण शहरवासियों को कठिनाई का सामना भी करना पड़ता था।
चूंकि शासक शहर का विस्तार करना चाहते थे, यही वजह रही होगी कि फाउंडरी (Nahan Foundry) की स्थापना भी उस समय के शमशेरगंज की तरफ को ही की गई होगी। 27,000 स्कवेयर यार्ड में फैले इस परिसर की रौनक तीन दशक पहले तक भी खूब देखी जा सकती थी।
प्राचीन कालीस्थान मंदिर भी नया बाजार का हिस्सा है। मौजूदा समय में नया बाजार में दुकानों की संख्या 200 से 250 के बीच हो सकती है। जानकार बताते हैं कि लगभग चार दशक पहले नया बाजार से आगे घरों के निर्माण में भी बढ़ोतरी हुई।
बता दें कि नाहन फाउंडरी के एक हिस्से पर चक्की भी हुआ करती थी। यहीं से अनाज का लेन-देन भी हुआ करता था। अब ये चक्की नहीं चलती। मगर नया बाजार अपना स्वरूप ले चुका है।