नाहन,10 फरवरी : हिमाचल के ऐतिहासिक शहर “नाहन” 400 साल का हो गया है। इतना तय है कि शहर की स्थापना 1621 में हुई थी, लेकिन तिथि को लेकर इतिहास में कोई सटीक जानकारी उपलब्ध नहीं है। यही कारण है कि 2021 का पूरा साल ही स्थापना के 400 वर्ष के रूप में पहचाना जाएगा। शहर इतिहास के दामन में अतीत के सुनहरे पल समेटे हुए है। इसे शब्दों में पिरो पाना मुश्किल है। हिमाचल में शायद ही कोई ऐसा शहर होगा जिसकी झोली में 400 साल का सफर होगा।
कैसे हुई स्थापना
इतिहासकारों के मुताबिक सिरमौर रियासत की राजधानी कलसी (अब उतराखंड का हिस्सा) में हुआ करती थी, लेकिन वहां गढ़वाल के राजा द्वारा बार-बार राजधानी पर आक्रमण कर दिया जाता था। इसी कारण तत्कालीन शासक कर्म प्रकाश (प्रथम) द्वारा किसी सुरक्षित स्थान की तलाश की जा रही थी।
नई जगह की तलाश में वह शिवालिक पहाड़ी की एक चोटी पर पहुंचे तो बाबा बनवारी दास से समस्या का जिक्र किया। इस पर बावा बनवारी दास ने उन्हें उस जगह को किला बनाने को कहा, जहां वह तपस्या कर रहे थे। खुद उस जगह चले गए जहां आज प्राचीन जगन्नाथ मंदिर मौजूद है। कहते हैं, बाबा बनवारी के अंगरक्षक दो शेर थे। इन शेरों के प्रतिबिंब आज भी सिरमौर के शाही महल के मुख्य द्वार पर मौजूद हैं।
923 मीटर की ऊंचाई पर बसे नाहन शहर ने 400 साल के सफर में कई उतार-चढ़ाव देखे हैं। मगर अपने खूबसूरत अतीत को आज भी दामन में समेटे हुए हैं। दीगर है कि सिरमौर रियासत की राजधानी सिरमौरी ताल से कलसी शिफ्ट हुई थी। क्योंकि नटनी के श्राप के बाद राजधानी गर्क हो गई थी।
बाबा की स्मृतिंया आज भी सुरक्षित
प्राचीन श्री जगन्नाथ मंदिर के गर्भ गृह में आज भी बाबा बनवारी दास की स्मृतियां मौजूद है। इसमें कमंडल, चरण पादुका व त्रिशूल इत्यादि शामिल है। यह भी मान्यता है कि नाहन का पौराणिक नाम “नाहर” था, इसका अभिप्राय था कि शिकार मत करो। जो धीरे धीरे बदलकर नाहन हो गया।
343 साल पहले समाधि
इतिहासकारो के मुताबिक श्री महंत बाबा बनवारी दास जी ने जीवित अवस्था में 1678 में समाधि ली थी। रामकुंडी में समाधी आज भी मौजूद है। बाबा बनवारी दास के साथ यहां श्री महंत परसराम दास जी, श्री महंत मोहन दास जी, प्राचीन श्री जगन्नाथ मंदिर के महंत श्री रामादास, श्री महंत माधव दास जी, श्री जगत गुरु रामानंदाचार्य जी की समाधियां बनी हैं। एक परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी इन समाधियों की देखरेख करता रहा है।आषाढ़ के महीने में परिवार शिव मंदिर में भंडारे का आयोजन भी करता है।
गुरु गोविंद सिंह जी के पड़े है चरण
337 साल पहले 30 अप्रैल 1684 के दिन सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी महाराज तत्कालीन सिरमौर रियासत के शासक के आग्रह पर नाहन पहुंचे थे। इस दिन को नाहन में हर वर्ष गुरु पर्व के रूप में मनाया जाता हैं। उस समय सिरमौर रिसायत के शासक मेदनी प्रकाश को गुरु महाराज ने एक तलवार भी भेट की थी। इतिहास में दर्ज है कि गुरु गोविंद सिंह एवं मेदनी प्रकाश के बीच मिलेट्री संधि हुई थी। इसी संधि से इस तलवार को जोड़कर देखा जाता है।
यह है पहचान
ऐतिहासिक शहर की पहचान हेरिटेज इमारतें भी है। तालाबों व सैरगाहों के रूप में नाहन की पहचान अलग ही रही है। शासकों द्वारा शहर की खूबसूरती को निखारने के लिए कदम उठाए जाते थे। तत्कालीन शासक शमशेर प्रकाश द्वारा स्थापित स्कूल ढाई सौ साल की उम्र पूरी कर चुका है।
गोरखों ने किया था कब्जा
इतिहासकार कंवर अजय बहादुर सिंह के मुताबिक 1803 में गोरखाओ ने सिरमौर रियासत पर कब्जा कर लिया था। इसमें नाहन भी शामिल था। शासक द्वारा 1815 में अंग्रेजों की मदद से उन्हें खदेड़ने में सफलता पाई थी। अंग्रेजों ने तत्कालीन शासक के तौर पर फतेह प्रकाश को गद्दी दी थी। उनके पौत्र शमशेर प्रकाश को विकास के मसीहा के तौर पर भी देखा जा सकता है, जिन्होंने शहर में कई ऐसे दूरदर्शी कदम उठाए, जिसका लोहा दुनिया ने माना। इसमें नाहन फाउंड्री भी थी। इसके अलावा शमशेर स्कूल की स्थापना भी शिक्षा की दिशा में एक प्रशंसनीय कदम रहा।
इसी बीच..
विधायक डॉ राजीव बिन्दल ने मुख्यमंत्री को अवगत करवाया कि धरोहर शहर नाहन की स्थापना सन् 1621 में हुई थी और नाहन अपनी स्थापना के 400 साल पूरे करने जा रहा है। उन्होंने नाहन शहर के 400 वर्ष पूर्ण होने पर प्रस्तावित विशिष्ट आयोजन हेतु मुख्यमंत्री को निमंत्रण भी दिया। जिस पर मुख्यमंत्री ने गंभीरता से विचार करने का आश्वासन दिया है।