नाहन, 29 अक्तूबर : ऐतिहासिक शहर में बेजुबान के प्रति मानवता (Humanity) की मिसाल सामने आई है। यह रहस्य है कि अचानक ही बंदरों की मौत क्यों हो रही है। हालांकि आशंका (Suspect) जाहिर की जा रही है कि बंदरों को जहर(Poison) दिया जा रहा है, लेकिन इसकी प्रमाणिकता साबित होनी बाकी है।
इसी बीच 38 वर्षीय प्रवीण पुंडीर मानवता के नाते शवों (Bodies) को न केवल दफना रहा है, बल्कि बंदर के एक मासूम बच्चे को 10 दिन तक घर में आश्रय (Shelter) भी दिया। प्रवीण के मुताबिक करीब 12 दिन पहले एक मादा बंदर (Female Monkey) अपने बच्चे के साथ घर के दरवाजे तक आ गई। 100 मीटर दूर जाने के बाद अचानक (Suddenly) ही उसने दम तोड़(Died) दिया। ऐसा स्पष्ट तौर पर प्रतीत हो रहा था कि जहर के सेवन की वजह से ही मौत हुई है। मादा बंदर की मौत होते ही सैंकड़ों अन्य बंदर भी मौके पर एकत्रित हो गए। लेकिन इसकी परवाह किए बगैर (Without care) ही प्रवीण पुंडीर बंदर के नन्हें बच्चे(Baby) को घर लेकर आ गए। लगभग 10 दिन तक बच्चे को आश्रय (Shelter) दिया। जब यह महसूस हुआ कि अब वो अपने जीवन की कमान खुद संभाल सकता है तो उसे बंदरों के झुंड(Herd) के साथ छोड़ दिया।
आपको बता दें कि किसी बंदर (Monkey) की मौत पर शव के आसपास फटकना भी बेहद जोखिमपूर्ण (Risky) होता है। उस समय बंदरों का रवैया बेहद ही आक्रामक(Aggressive) होता है। 38 साल के प्रवीण पुंडीर ने एमबीएम न्यूज नेटवर्क से बातचीत में कहा कि 8 से 10 बंदरों के शवों को दफना (Buried) चुके हैं। कई मर्तबा दुर्गंध की वजह से कुत्ते शवों को बाहर निकाल देते हैं। उनका कहना था कि एमईएस मंदिर के आसपास बंदरों में तो खौफ है ही, साथ ही बंदरों की बड़ी-बड़ी टोलियां (Herds) एकत्रित हो जाने की वजह से चल पाना भी दूभर(Tough) हो जाता है।
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उधर, वन अरण्यपाल(Forest Conservator) बीएस राणा ने कहा कि बंदरों को वर्मी घोषित किया गया है। इसमें बंदरों को गोली(Shoot) मारने की अनुमति होती है, लेकिन जहर(Poison) देना गलत है। उन्होंने बताया कि बंदरों (Monkey) को पकड़ने (Catching) का भी कार्य शुरू कर दिया गया है। वन अरण्यपाल का कहना है कि बंदरों की समस्या को लेकर मुख्यमंत्री हेल्पलाइन के जरिए भी लगातार शिकायतें (Complaints) मिलती हैं। उनका कहना है कि नगर परिषद को पोस्टमार्टम करवाकर बंदरों की मौत की वजह अवश्य ही पता करनी चाहिए। वन अरण्यपाल ने शहरवासियों को खुले में कूड़ा न डालने की भी सलाह दी है। उनका कहना था कि इसकी वजह से भी बंदर गलियों व सड़कों के किनारे झुंड बनाकर आते हैं।
कुल मिलाकर बंदरों की मौत की वजह चाहे जो भी हो, लेकिन कच्चा टैंक के रहने वाले प्रवीण पुंडीर से एक नन्हें बंदर के बच्चे की बेबसी नहीं देखी गई। 10 दिन तक बच्चे की परवरिश कर इंसानियत की मिसाल कायम की है।