कुल्लू: जनपद अपनी समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर के लिए हिमाचल प्रदेश में अपना विशिष्ट स्थान रखता है। इसी सांस्कृतिक धरोहर का एक अंग यहां की अनुपम पारम्परिक लोक कलाएं है। कुल्लू की एक ऐसी ही पारम्परिक लोक कला है पठाअ चित्रकारी। इस कला का प्रयोग ग्रामीण घरों की सजावट तथा धार्मिक अनुष्ठानों में प्रायः देखने को मिलता है। इस चित्रकारी में देवदार पेड़ का पीला पदार्थ पराग जिसे पठाअ कहा जाता है को खट्टी लस्सी में मिलाकर रंग तैयार कर हाथ की उंगली से डिजाइन तैयार किए जाते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में विवाह शादी का देहरा अभी भी पठाअ से तैयार किया जाता है। लेकिन धीरे-धीरे यह लोक कला समाप्त हो रही है अतः इसका संरक्षण एवं संवर्द्धन आवश्यक हो जाता है। इसी कड़ी में भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला विवग्योर, पीपलागे में पठाअ चित्रकारी पर दो दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया, जिसमें स्कूल की छात्राओं को पठाअ के रंगों से चित्रकारी करना तथा उसके महत्त्व के बारे में बताया गया तथा छात्राओं की चित्रकला पर प्रतियोगिता करवाई गई जिसमें लगभग 50 छात्राओं ने भाग लिया। प्रतियोगिता में ईशा ने प्रथम स्थान, प्रगति ने द्वितीय स्थान तथा दिक्षा ने तृतीय स्थान प्राप्त किया। विजेता प्रतिभागियों को स्मृति चिन्ह प्रदान कर सम्मानित किया गया। अंजना ने पठाअ चित्रकारी विशेषज्ञ की भूमिका निभाई।
विवग्योर स्कूल के प्रधानाचार्य खुशाल ने चित्रकारी कार्यशाला को उनके स्कूल में करवाने के लिए विभाग का धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि आजकल घरों में चित्रकारी के लिए कृत्रिम रंगों का प्रयोग किया जाता है जो कि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है। अतः हमें कृत्रिम रंगों के स्थान पर पठाअ से बने रंगों का प्रयोग करना चाहिए, इसे अति पवित्र माना जाता है। इस अवसर पर रोहित पराशर, लीलामणी पराशर सहित स्कूल का स्टाफ भी मौजूद रहा।
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