मनीष ठाकुर /हरिपुरधार
उत्तर भारत की प्रसिद्ध शक्तिपीठ मां भंगाइणी माता मंदिर हरिपुरधार को नया स्वरूप देने की तैयारी है। मंदिर सेवा समिति ने दो वर्ष के भीतर इस कार्य को पूरा करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। मंदिर के निर्माण में मंडी की सिराज घाटी से पत्थर आएगा तो किन्नौर के कारीगर नक्काशी करेंगे। मंदिर का डिजाईन तमिलनाडू के वास्तुकार ने तैयार किया है। लागत को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है। मंदिर के निर्माण में लकड़ी व पत्थर का ही इस्तेमाल होगा। वन निगम पांवटा साहिब के डिपो से दो लकडि़यों के ट्रक पहुंच चुके हैं।
मंदिर की नक्काशी वास्तु का बेजोड़ नमूना होगी। मंदिर की सुंदरता को निखारने के मकसद से ही समिति ने निर्माण कार्य प्राचीन शैली में करवाने का निर्णय लिया है। अहम बात है कि मंदिर के पुराने ढांचे के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं होगी, केवल बाहर से ही नया ढांचा तैयार किया जा रहा है। इसके ऊपर पत्थर की छत होगी।
समिति के संयोजक बलबीर ठाकुर का कहना है कि लकड़ी में खूबसूरत नक्काशी की जाएगी। इससे मंदिर की सुंदरता में चार चांद लगेंगे। 1992 से पहले मां भंगाइणी का एक छोटा सा मंदिर था। इसके बाद मौजूदा स्वरूप में ढाला गया। इसके 27 साल बाद अब दोबारा नया स्वरूप दिया जा रहा है।
अहम बात यह भी है कि समिति द्वारा मंदिर के समीप ही हैलीपैड का निर्माण भी किया जा रहा है। इसका कार्य करीब-करीब पूरा हो चुका है। कोशिश की जा रही है कि मंदिर के लिए हैली टैक्सी सेवा शुरू हो जाए। इसके लिए समिति राज्य सरकार को भी प्रस्ताव भेजने की तैयारी कर रही है।
समिति के संयोजक बलबीर ठाकुर कहते हैं कि पहला लक्ष्य यात्रियों के ठहरने की उचित व्यवस्था करने का था, जो पूरा हो चुका है। मंदिर के प्रांगण में दो हजार श्रद्धालुओं के ठहरने का इंतजाम है। इस मंदिर के प्रांगण से मौसम साफ होने की सूरत में चूड़धार चोटी का विहंगम दृश्य भी नजर आता है।
क्या है मंदिर का इतिहास?
भगवान शिव के अवतार शिरगुल जी महाराज की मां भंगयाणी माता मुंह बोली बहन है। ऐसा माना जाता है कि जब शिरगुल जी महाराज दिल्ली गए थे तो उनकी ख्याति देखकर मुगल शासक ने उन्हें चमड़े की जंजीरों में बंदी बना लिया था। चाहकर भी भगवान शिरगुल चमड़े की जंजीर नहीं तोड़ सकते थे। उस वक्त बागड़ के गुगा पीर ने जेल की सफाई कर्मचारी की मदद से भगवान शिरगुल को आजाद करवाया। इसके बाद से महिला सफाई कर्मी शिरगुल जी महाराज ने अपनी मुंहबोली बहन बना लिया। मां भंगयाणी को आशीर्वाद दिया कि चोटी पर जो श्रद्धालु उनके दर्शनों को आएगा, उसकी यात्रा तभी पूरी होगी जब वह बहन के मंदिर में भी शीश नवाजेगा।
बताते हैं कि मंदिर परिसर में ही शिवलिंग की उत्पत्ति भी खुद हुई थी, जिसे अब सहेज कर मंदिर कमेटी ने रखा है। मंदिर तक पहुंचने के लिए चंडीगढ़ से 175 किलोमीटर व देहरादून से 165 किलोमीटर की दूरी है। जबकि नाहन से 88 किलोमीटर का सफर है। तकरीबन 7500 फुट ऊंचाई पर मंदिर स्थित है। इस मंदिर की सीमा से ही शिमला जिला शुरू हो जाता है। उत्तर भारत के कई राज्यों से साल भर मां के चरणों में श्रद्धालु पहुंचते हैं। एक तरफ मध्य हिमालय की चोटिया भी नजर आती है। कडक़ती ठंड में दोनों वक्त पूजा-अर्चना नियमित रूप से चलती है।