एमबीएम न्यूज/शिमला
कैथलीघाट-ढली फोरलेन (27.5 किलोमीटर) के निर्माण में एक जबरदस्त सपना देखा गया है। इसे मूर्त रूप प्रदान करने के लिए नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एनएचएआई) ने कवायद भी शुरू कर दी है। कोशिश साकार हुई तो देवभूमि में देश का सबसे ऊंचा केबल स्टेयड ब्रिज होगा। अक्सर आप विदेशों के वीडियो देखते होंगे, जिनमें दो पहाडिय़ों के बीच पुल बना दिखता है। ठीक उसी तरह से कैथलीघाट-ढली फोरलेन पर भी यह ब्रिज होगा।
तकरीबन 200 मीटर गहरी खाई पर दो पहाड़ों के हिस्सों को पुल जोड़ेगा। 200 मीटर गहरी खाई में 120 मीटर नीचे एक ऐसी जगह मिली है, जहां इसका बेस होगा। लंबाई 600 मीटर के आसपास होगी। कैथलीघाट का जीरो प्वाइंट 1700 मीटर की ऊंचाई पर है, जबकि दूसरा छोर 2250 मीटर ऊंचा है। लिहाजा पुल में हल्की सी चढ़ाई भी संभावित है। बेस से धातुनुमा पीलर की ऊंचाई करीब 210 मीटर के आसपास होगी। यानि पुल से ऊपर भी 90 मीटर धातुनुमा पीलर होगा। ऊंचाई अधिक होने की वजह से केबल स्टेयड ब्रिज का निर्माण आसान नहीं है। 120-200 मीटर की ऊंचाई किसी खतरे से कम नहीं आंकी जा सकती।
कैथलीघाट से ढली फोरलेन पर 1480 करोड़ खर्च किए जा रहे हैं, जिसमें से अकेले इसी ब्रिज पर 400 करोड़ के आसपास का खर्च आएगा। उम्मीद की जा रही है कि सितंबर माह से कार्य शुरू हो जाएगा। इसका निर्माण पूरा होने में लंबा वक्त लग सकता है। नेशनल हाईवे अथॉरिटी ऑफ इंडिया ने इस ब्रिज के निर्माण का कार्य नामी चेतक कंपनी को सौंपा है, जो इसमें यूरोप की इंटरनेशनल ब्रिज टैक्नोलॉजी कंपनी की मदद ले रही है। विदेशी कंपनी के इंजीनियर्स भी सक्रिय भूमिका निभाएंगे। फिलहाल इन दिनों अंतरराष्ट्रीय मापदंडों के मुताबिक ब्रिज का डिजाईन तैयार किया जा रहा है।
बताया गया कि देश में मुंबई के बांद्रा में केबल स्टेयड ब्रिज बना है। इसके अलावा दिल्ली में यमुना नदी पर भी इस तरह का पुल बन रहा है, मगर दो पहाड़ों को जोडऩे के अलावा ऊंचाई के लिहाज से यह ब्रिज अपने आप में देश का पहला होगा। निश्चित तौर पर यह पुल देश के पर्यटकों के लिए भी आकर्षण का केंद्र बनेगा। इस पुल की चौड़ाई फोरलेन के मापदंडों के मुताबिक 80 फीट (24 मीटर)के आसपास होगी।
क्या कहते हैं परियोजना निदेशक..
चेतक कंपनी के परियोजना निदेशक मनोज पटियाल का कहना है कि इस ऊंचाई पर बनने वाला यह पहला केबल स्टेयड ब्रिज होगा। पूछे जाने पर पटियाल का यह भी कहना था कि पुल के निर्माण में इस्तेमाल होने वाले मैटीरियल यूरोपियन देशों से आयात भी करना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि यूरोपियन देशों में यह तकनीक काफी कारगर साबित हुई है। उन्होंने बताया कि 27.5 किलोमीटर की दूरी में 13 पुलों के अलावा तीन सुरंगों का निर्माण भी होना है। परियोजना निदेशक के मुताबिक यह ब्रिज एक तरह से शिमला बाईपास के रूप में भी पहचान बनाएगा। उन्होंने कहा कि पुल की क्षमता को लेकर भी कोई परेशानी नहीं होगी।
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