सोलन (एमबीएम न्यूज): उद्योगपतियों द्वारा सरकारी खजाने की मोटी राशि हजम कर ली जाती है। ऐसे कई मामले विगत में भी सामने आते रहे हैं। ताजा मामला, बद्दी के एक नामी उद्योग से जुड़ा है। इस मामले को पर्दाफाश करने में आबकारी व कराधान विभाग की निरीक्षक रीमा सूद ने अहम भूमिका निभाई है, जिन्हें उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र प्रदान किया गया है।
इसके अलावा आबकारी व कराधान अधिकारी डॉ. अमित शोष्टा, निरीक्षक रूपेंद्र सिंह, दीप चंद शर्मा, कुलदीप शर्मा, शशिकांत व मनोज सचदेवा भी शामिल हैं। सनद रहे कि निरीक्षक रीमा सूद को ही उस वक्त शक हुआ था, जब दवा उद्योग के जैसे ही नाम के अन्य व्यापारी की रिर्टन खंगाल रही थी। तब पता चला था कि बिक्री का बड़ा हिस्सा टैक्स फ्री दिखाया जा रहा है। आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि इस उद्योग द्वारा पिछले पांच सालों से सरकार को करोड़ों के टैक्स का चूना लगाया जा रहा था।
प्रदेश में तमाम दवाओं पर पांच प्रतिशत की दर से टैक्स लगता है, लेकिन उद्योग द्वारा इसे करमुक्त बनाकर बेचा गया। आबकारी व कराधान विभाग के दक्षिण प्रवर्तन कार्यालय परवाणु ने इस उद्योग पर तीन करोड़ 85 लाख का टैक्स व ब्याज ठोका है।
मामला संज्ञान में आने के बाद विभाग ने उद्योगपति को विभागीय जांच में शामिल होने को कहा, लेकिन टालमटोल कर दी गई। फिर दलील दी गई कि सेफा दवाईयों पर टैक्स नहीं लगता है। लेकिन उद्योगपति द्वारा इस बाबत कोई अधिसूचना पेश नहीं की जा सकी।
पुरानी दलील से पलटते हुए उद्योगपति ने माना कि दवाईयां करमुक्त नहीं हैं, लेकिन प्रदेश के बाहर एक प्रतिशत की दर से बेचा गया। यह तर्क भी विभागीय जांच में बेबुनियाद पाया गया, क्योंकि एक प्रतिशत की दर से भी टैक्स नहीं जमा करवाया गया था। उद्योग के उत्पादन का आधे से अधिक हिस्सा वास्तव में सी-फार्म के द्वारा अंतरराज्जीय व्यापार के तहत प्रदेश से बाहर बेचा जाता था।
आप यह जानकर भी चकित हो जाएंगे कि उद्योगपति ने अपनी गलतियों पर पर्दा डालने के मकसद से सी-फार्म पर दर्शाई गई रकम के अंकों में कुछ अंक जोडक़र इसे बढ़ा दिया। साथ ही प्रवर्तन कार्यालय में यह सिद्ध करने के लिए प्रस्तुत कर दिया कि सबकुछ ठीकठाक है। शक होने पर विभाग ने सी-फार्म को प्रदेश की फोरेंसिक प्रयोगशाला जुन्गा भेजा।
विस्तारपूर्वक विश्लेषण के पश्चात यह सिद्ध हो गया कि उद्योगपति ने सी-फार्म पर अंकित मौलिक राशि में भारी परिवर्तन किए थे। इसमें 10 लाख से 50 लाख तक के अंक जोड़े गए, ताकि प्रदेश के खजाने को टैक्स चोरी से चूना लगाया जा सके। दो फार्मों में तो 70-70 लाख रुपए तक की राशि बढ़ा डाली गई। उद्योगपति का सामना जब इन तथ्यों से करवाया गया तो गलती स्वीकार कर ली गई। पूरी तरह से यह बात साबित हो गई है कि उद्योगपति ने गत पांच वर्षों में लगभग 50 करोड़ रुपए की दवाईयों पर टैक्स की चोरी की थी।
टैक्स व ब्याज की कुल 3 करोड़ 85 लाख की राशि में से उद्योगपति ने केवल 35 लाख रुपए की राशि सरकारी खजाने में जमा करवा दी है। शेष राशि के भुगतान के लिए एक महीने का समय मांगा है। विभाग का यह भी कहना है कि इस तरह की हेरा-फेरी करने के लिए उद्योगपति को 5 करोड़ का जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
उप आबकारी व कराधान आयुक्त, दक्षिण प्रवर्तन क्षेत्र परवाणु डॉ. सुनील कुमार ने पुष्टि की है।