नाहन (शैलेंद्र कालरा): शहर की शान देहली गेट ‘लिटन मैमोरियल’ का बाह्म आकर्षण हर कोई हर दिन देखता है। लेकिन लगभग 50 फीट की ऊंचाई वाले इस घंटाघर के भीतर गजब रहस्य हैं, जिसे शायद शहर के चंद लोग ही जानते होंगे। भीतर की संरचना गजब कारीगरी का बेजोड़ नमूना है।
पहली बार एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने यह जानने की कोशिश की, विशालकाय घडिय़ों के पीछे क्या राज है। इस कोशिश में न केवल रोचक बल्कि ऐसे तथ्य सामने आए जो हैरान कर देने वाले हैं। पाठकों के समक्ष इस मैमोरियल की टॉप से बॉटम की स्टोरी साझा की जा रही है।
टॉप पर…
मैमोरियल के टॉप पर तीन विशालकाय घंटे मौजूद हैं। इनका निर्माण 1901 में लंदन की कंपनी ने किया था। सोचिए, क्ंिवटलों वजन के इन घंटों को इस ऊंचाई तक कैसे पहुंचाया गया होगा। तकरीबन 50 से 70 वर्ग फुट के क्षेत्र में इन्हें स्थापित किया गया है। एक घंटा 15 मिनट, दूसरा आधे घंटे व तीसरा एक घंटे बाद बजता था। यह अलग बात है कि दशकों पहले घंटों की आवाज सुनाई देनी बंद हो गई। इस जगह पर खड़ा होना मुश्किल है। लोहे के मजबूत ढांचे में घंटे बंधे हैं। इस जगह से चौगान समेत दूर-दूर का नजारा जबरदस्त नजर आता है। एमबीएम न्यूज ने इसी जगह पर पहुंच कर तस्वीरें कैद की।
टॉप तक पहुंचने की चुनौती…
लगभग 40 फीट की हवा में झूलती लोहे की सीढ़ी से टॉप तक पहुंचना चुनौतीपूर्ण है। सावधानी यह भी बरतनी पड़ती है कि सीढ़ी तक पहुंचने के लिए शरीर का कोई भी हिस्सा किसी भी उपकरण से न छुए, क्योंकि ऐसा करने से घंटाघर की सुईयां बंद होने का खतरा पैदा हो जाता है। ऊंचाई की तरफ गुफानुमा इस स्ट्रक्चर में 25 से 30 फुट लंबे पैंडुलम भी नजर आए। इसके बाद मैमोरियल के दूसरे धरातल पर पहुंच जाते हैं, जहां विशालकाय सुईयां सामने होती हैं।
यह हैं प्रथम तल का राज …
इस तल पर एक लकड़ी की सीढ़ी के सहारे फिर एक अंधकारवाली गुफा में पहुंचा जाता है, जो सीधी नहीं बल्कि ऊंचाई की तरफ है। तकरीबन 20 फुट की इस गुफा में गरारियों पर भारी भरकम वजन डाला गया है। इसी से विशालकाय सुईयों को गति मिलती है। पैंडुलम या फिर वजन में मामूली सी भी गड़बड़ से शहर का वक्त रुक जाता है। यहां तक पहुंचने के लिए तंग घुमावदार सीढिय़ां हैं। तकरीबन दो फुट की चौड़ाई है। गजब की कारीगरी यह भी है कि सीढिय़ों में चढ़ते वक्त शरीर की लंबाई चाहे जितनी हो, सिर छत से नहीं टकराता है।
चंद सवाल…
116 साल पहले कैसे इन विशालकाय घंटों को तंग जगह पर स्थापित किया गया होगा। यह सवाल सबसे बड़ा है, जिसका जवाब शायद ही आज कोई दे पाए। इसके अलावा भीतर की संरचना ऐसी है, जो संभवत आज दोबारा कर पाना असंभव ही होगा।
एक ही है शहर में कारीगर..
शहर में पक्का टैंक के समीप दुकान चला रहे कारीगर राजेंद्र ही एकमात्र हैं, जो इस विशालकाय घड़ी की मरम्मत कर सकते हैं। पीढ़ी दर पीढ़ी इस जिम्मेदारी को संभाल रहे हैं। इस मैमोरियल की खास बात यह है कि चारों दिशाओं से समय की रफ्तार दिखती है।