नाहन (शैलेंद्र कालरा): देश में न्यायपालिका के सर्वोच्च पद से सिरमौर के दामाद जस्टिस टीएस ठाकुर मंगलवार को सेवानिवृत हो गए हैं। बतौर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया, उन्होंने बेबाक व स्पष्ट भाषा शैली से इस पद पर अपनी अनूठी मिसाल छोड़ी है। ऑनलाइन मीडिया में जस्टिस ठाकुर की बेबाक स्पष्टवादी बयानों को लेकर अलग-अलग तरीके से चर्चा की जा रही है।
जस्टिस ठाकुर की प्रशंसा में जमकर खबरें लिखी जा रही हैं। एक वैबसाइट ने बीबीसी के हवाले से लिखा है कि, एक बार अपने पिता की सरकार की बर्खास्तगी की भी मांग कर दी थी। उनके पिता देवीदास ठाकुर उप मुख्यमंत्री थे। यह सरकार जम्मू व कश्मीर में 2 जुलाई 1983 से 6 मार्च 1986 तक रही थी। उस दौरान जस्टिस ठाकुर हाईकोर्ट में बार एसोसिएशन के अध्यक्ष थे। जब वह अपने पिता के खिलाफ आवाज उठा सकते थे तो सर्वोच्च पद पर रहते हुए कैसे गलत होते देख सकते थे।
एनडीटीवी ने लिखा है कि एक साल से थोड़ा ज्यादा देर तक भारत के मुख्य न्यायधीश के तौर पर जस्टिस ठाकुर ने कई बार सरकार के खिलाफ सख्त रुख अपनाया। जस्टिस ठाकुर ने अपने कार्यकाल में कई ऐसे निर्णय लिए, जिनकी जितनी भी तारीफ की जाए, कम है। जस्टिस ठाकुर ने तब सबसे ज्यादा मीडिया का ध्यान आकर्षित किया था, जब पीएम के सामने जजों की कमी को लेकर भावुक हो गए थे।
बतौर सीजेआई एक मर्तबा सिरमौर में आए अपने ससुराल…
बतौर भारत के सीजेआई अपने ससुराल सिरमौर के पच्छाद विकास खंड के दाड़ो देवरिया गांव में 17 अगस्त 2016 को आए थे। सादगी पर हर कोई मुरीद हो गया था। अपनी धर्मपत्नी अमिता ठाकुर के साथ आए थे। चाहते तो राजभवन में भी रुक सकते थे, लेकिन गांव में ही रुक कर अपनी सादगी की एक मिसाल पेश कर दी। अपनी सास रत्ना पंवार के पांव छूकर आशीर्वाद लिया था।
देवभूमि में शायद ऐसा पहली बार हुआ था, जब देश के सुप्रीम कोर्ट का कोई मुख्य न्यायधीश गांव में ही रात्रि ठहराव कर रहा था। सिरमौर के दामाद ने देश के 43वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के तौर पर 3 दिसंबर 2015 को कार्यभार संभाला था। राष्ट्रपति द्वारा शपथ दिलवाई गई थी।
4 जनवरी 1952 को जन्मे जस्टिस तीरथ सिंह ठाकुर अक्तूबर 1972 में प्रैक्टिस शुरू की। इसके लिए उन्होंने अपने स्व. पिता डीडी ठाकुर का चैंबर ज्वाइन किया। उनके पिता भी जे एंड के हाईकोर्ट के एक नामी एडवोकेट रहे। साथ ही जम्मू व कश्मीर में उप मुख्यमंत्री भी रहे। 1990 में जस्टिस ठाकुर सीनियर एडवोकेट बने। 16 फरवरी 1994 को उन्हें जे एंड के हाईकोर्ट में अतिरिक्त न्यायधीश बनाया गया। इसके बाद उनकी ट्रांसफर मार्च 1994 में कर्नाटक हाईकोर्ट में बतौर न्यायधीश हुई।
सितंबर 1995 में वह स्थाई न्यायधीश बन गए। फिर जुलाई 2004 में दिल्ली हाईकोर्ट ट्रांसफर हुए। 9 अप्रैल 2008 को दिल्ली हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायधीश बने। इसके बाद पंजाब व हरियाणा में भी उन्होंने बतौर चीफ जस्टिस की सेवाएं 11 अगस्त 2008 तक दी। 17 नवंबर 2009 को सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बने।
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