मज़हब के नाम पर सदा लड़ता है आदमी
दैरो-हरम के नाम पर मिटता है आदमी
जिनका न धर्म कोई, ईमान भी नहीं है
कुर्बानियों की बात वो करता है आदमीे
मालो-जऱ, रिश्ते सभी बस चार दिनों के
क्यूं बात नहीं इतनी समझता है आदमी
बीते युगों में शायद होगा कोई खु़दा
खुद को ही ख़ुदा आज समझता है आदमी
मूरत पे चढ़ाते हो रोज़ दूध, घी, बताशे
सड़कों पे भीख मांगता फिरता है आदमी
तोड़ डालों मस्जिदें, फूंक दो मंदिर सभी
जिनके लिए इंसानियत तज़ता है आदमी
बेबाक था, बेबाक हूं, बेबाक रहूंगा
बकता रहे, जो गालियां बकता है आदमीे
पंकज तन्हा
काव्य संग्रह- शब्द तलवार है
नाहन, जिला सिरमौर, हिमाचल प्रदेश