कुल्लू (एमबीएम न्यूज़) : हिमाचल प्रदेश कला, भाषा, एवं संस्कृति अकादमी के पूर्व सचिव एवं विपाशा के सेवानिवृत्त सम्पादक डा. तुलसी रमणी की पुस्तक “लाहुल हिमालय का अंतरंग लोक” का मनाली स्थित हिमालय बौद्ध विहार के सभागार में लोकार्पण हुआ। इस महत्त्वपूर्ण पुस्तक का लोकार्पण लद्दाख के प्रख्यात् विद्वान और समस्त लद्दाख बौद्ध विहार संगठन के पूर्व अध्यक्ष गेशे कोन्चोक नमज्ञाल ने किया।
गेशे कोन्चोक ने कहा डा. तुलसी रमण की यह पुस्तक पश्चिमी हिमालय की अनूठी घाटी लाहुल की मिश्रित और विलक्षण संस्कृति का परिचायक है। लाहुल हिमालय के केंद्र में है, इसलिए इस घाटी का सामाजिक-सांस्कृतिक अध्ययन आवश्यक है। इससे पूर्व सारनाथ के प्रोफेसर बनारसी लाल ने डा. रमण की पुस्तक पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि लाहुली समाज तीन मुख्य घाटियों में विभक्त है, इस पुस्तक में समूचे लाहुल के समाज और संस्कृति का आज के मुहावरे में विश्लेषण हुआ है। उन्होंने कहा कि यह एक समीक्षक की दृष्टि का लेखन है। इसमें यात्रा संस्मरण के साथ-साथ लाहुल के भूगोल, इतिहास, कला-संस्कृति और हिंदू तथा बौद्ध परम्परा का सम्बंध भी दर्शाया गया है।
इस अवसर पर प्रो. हीरानंद नेगी, प्रो. उर्ज्ञन दादुर, प्रो. रमेश नेगी, तोबदन, डा. टशी पलजोर, स्थानीय विधायक गोविंद ठाकुर, लेखक सैन्नी अशेष, किशन श्रीमान, लालचंद ढिस्सा के साथ-साथ बौद्ध दर्शन और संस्कृति के बनारस, नागपुर, दिल्ली, किन्नौर, लाहुल तथा स्पिति के अनेक विद्वान, इतिहासकार उपस्थित थे। डा. तुलसी रमण ने इस आयोजन के लिए काईस बौद्ध विहार के आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त किया।
गेशे कोन्चोक ने कहा डा. तुलसी रमण की यह पुस्तक पश्चिमी हिमालय की अनूठी घाटी लाहुल की मिश्रित और विलक्षण संस्कृति का परिचायक है। लाहुल हिमालय के केंद्र में है, इसलिए इस घाटी का सामाजिक-सांस्कृतिक अध्ययन आवश्यक है। इससे पूर्व सारनाथ के प्रोफेसर बनारसी लाल ने डा. रमण की पुस्तक पर विचार प्रकट करते हुए कहा कि लाहुली समाज तीन मुख्य घाटियों में विभक्त है, इस पुस्तक में समूचे लाहुल के समाज और संस्कृति का आज के मुहावरे में विश्लेषण हुआ है। उन्होंने कहा कि यह एक समीक्षक की दृष्टि का लेखन है। इसमें यात्रा संस्मरण के साथ-साथ लाहुल के भूगोल, इतिहास, कला-संस्कृति और हिंदू तथा बौद्ध परम्परा का सम्बंध भी दर्शाया गया है।
इस अवसर पर प्रो. हीरानंद नेगी, प्रो. उर्ज्ञन दादुर, प्रो. रमेश नेगी, तोबदन, डा. टशी पलजोर, स्थानीय विधायक गोविंद ठाकुर, लेखक सैन्नी अशेष, किशन श्रीमान, लालचंद ढिस्सा के साथ-साथ बौद्ध दर्शन और संस्कृति के बनारस, नागपुर, दिल्ली, किन्नौर, लाहुल तथा स्पिति के अनेक विद्वान, इतिहासकार उपस्थित थे। डा. तुलसी रमण ने इस आयोजन के लिए काईस बौद्ध विहार के आयोजकों के प्रति आभार व्यक्त किया।