सर्दी का मौसम था, एक दिन रात को सोने लगे तो बच्चे भी अपनी-अपनी रजाई निकालने लगे। हमने अपनी वहीं पुरानी रजाई निकाली। हमारी पुरानी रजाई देख कर बेटी ने पूछा, ‘‘पापा मुझे कई साल हो गए देखते हुए, हमेशा आप सर्दियों में यह पुरानी रजाई लेते हैं। इसमें क्या खास बात है कि आज तक कभी नई रजाई नहीं ली’’।
बेटा, ‘‘आपकी मां अपने घर में सबसे छोटी-छोटी थी तो आपकी नानी आपकी मां से बहुत प्यार करती थी। शादी होने के बाद हम दोनों को बहुत ही चाहती थी। जब आपकी नानी का अंतिम समय आया तो हमें बहुत याद करती रही परंतु हम आपकी नानी से नहीं मिल पाए। आपकी नानी की हमसे मिलने की इच्छा अधूरी ही रह गई। हमें भी इसका बहुत दुख हुआ। एक साल के बाद मृतजनों की बरसी की जाती है, जिसमें हमारे भारतीय संस्कृति के अनुसार बेटी को दिवंगत मां की तरह पूजा जाता है। इस दौरान वह सारा सामान दिया जाता है जो परिवार के चलाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यह रजाई भी उसी में दान दी गई थी। जब भी हमें यह रजाई सोने के लिए लेते हैं तो आपकी नानी की याद आ जाती है और हमें बहुत गहरा सुकून मिलता है, जिससे हमें बहुत अच्छी नींद आती हैं। ऐसा लगता है, हम आपकी नानी के आंचल की छांव में सो रहे हैं।’’
लेखक: प्रताप अरनोट
स्वतन्त्र पत्रकार, कुल्लू