नाहन (दीक्षा कश्यप/रीतिका तोमर) : शायद पढक़र हैरान होंगे, लेकिन सच्चाई है। 84 साल की महिला तारा देवी एक अनोखी जिम्मेदारी को बखूबी निभा रही है। सब जानते हैं, रामकुंडी में महंतों की समाधियां हैं। यह अलग बात है कि समाधियां की अनमोल धरोहर का रखरखाव नहीं हो रहा।
महंतों की समाधियां व 84 साल की वृद्ध महिला तारा देवी।एमबीएम न्यूज नेटवर्क की टीम, जब सोमवार को इन समाधियों के इतिहास को खंगालने पहुंची तो चौंकाने वाली बात सामने आई, क्योंकि यहां 84 साल की वृद्ध महिला तारा देवी मिली, जो बाबा बनवारी दास समेत महंतों की समाधियों की देखभाल की जिम्मेदारी निभा रही थी। साथ ही समीप ही शिव मंदिर में सुबह-शाम की पूजा-अर्चना भी करती है।
करीब 239 साल पहले इस स्थान पर ली थी बाबा बनवारी दास ने जिंदा समाधि।विशेष बातचीत के दौरान वृद्ध महिला ने बताया कि हालांकि पूरा परिवार ही इस जिम्मेदारी को निभा रहा है, लेकिन परिवार के सदस्यों की व्यस्तता की वजह से वह खुद ही इस जिम्मेदारी को निभाती हैं। वृद्ध महिला का इकलौता बेटा है, जिनकी कोई संतान नहीं है। लिहाजा तारा देवी को इस बात की चिंता है कि उनके बाद इन समाधियों का रखरखाव कौन करेगा। बेटे तक तो सब ठीक है। उन्होंने बताया कि श्री महंत बाबा बनवारी दास जी ने जीवित अवस्था में 1678 में समाधि ली थी।
बाबा बनवारी दास के साथ यहां श्री महंत परसराम दास जी, श्री महंत मोहन दास जी, प्राचीन श्री जगन्नाथ मंदिर के महंत श्री रामादास, श्री महंत माधव दास जी, श्री जगत गुरु रामानंदाचार्य जी की समाधियां बनी हैं। बुजुर्ग महिला ने बताया कि संत सुमित्रा देवी ने भी जीवित अवस्था में ही समाधि ली थी। उनका परिवार ही पीढ़ी दर पीढ़ी इन समाधियों की देखरेख कर रहा है।
आषाढ़ के महीने में परिवार शिव मंदिर में भंडारे का आयोजन भी करता है। महिला के पति रोशन लाल इन समाधियों की देखरेख करते थे, लेकिन उनके निधन के बाद वह खुद जिम्मेदारी को निभाने लगी।
प्राचीन जगन्नाथ मंदिर के गर्भगृह में मौजूद बाबा बनवारी दास की निशानियां।कौन थे बाबा बनवारी दास..
नाहन शहर की स्थापना 1621 में राजा कर्म प्रकाश ने की थी, जिन्होंने सिरमौर रियासत पर 1616 से 1630 तक शासन किया। बाबा बनवारी दास का शासक बड़ा उपासक था। बाबा बनवारी दास ने रियासत की उन्नति के लिए तप भी किया। कहते हैं, जब बनवारी दास यहां तप किया करते थे तो दो शेर उनके ईर्द-गिर्द बैठते थे। एक शेर हर वक्त जाग कर बाबा बनवारी दास की रक्षा करता था।
इस बात के निशान शाही महल के मुख्यद्वार पर आज भी मौजूद है, जहां संगमरमर के दो शेर बने हैं। इसमें एक शेर जागता हुआ दिखाई दे रहा है तो दूसरा सो रहा है। ऐतिहासिक चौगान मैदान में बाबा बनवारी दास पवैलियन भी बना है। ऐसा भी बताया जाता है, प्राचीन श्री जगन्नाथ मंदिर में जिस गर्भगृह में बाबा बनवारी दास का सामान आज भी मौजूद है, उसी जगह पर बाबा ने तप किया था।