कुल्लू (एमबीएम न्यूज़) : सृष्टि के रचियता देवता बड़ा छमांहु स्वर्ग लोक से धरती लोक पर लौटते ही चवाली माता के प्रेम प्रसंग में मदहोश हो गए। चवाली माता यानि कि 44 हजार रानियों ने देवता बड़ा छमांहु को अपनी वाहों की कैद में डाल दिया। नव सवंत के दिन देवता बड़ा छमांहु तीन महीने बाद देवराज इंद्र की सभा से स्वर्ग लोक से लौटे।
हजारों लोगों ने देवता के आगमन का स्वागत किया और देवता को सोने चांदी के आभूषणों तथा फूलों से सुसज्जित कर दर्शन किए। सराज घाटी के कोटला गांव की देवता की कोठी से भव्य रथ यात्रा का आयोजन माता चवाली के मंदिर तक हुई। गौर रहे कि देवता बड़ा छमांहु की 44 हजार रानियां हैं और स्वर्ग लोक से लौटते ही वे सर्वप्रथम अपनी रानियों से मिलने जाते हैं।
रानियों से मिलने का यह दृश्य जहां चमत्कारी, आकर्षक व भाव विभोर करने वाला होता है वहीं यह रानियों देव रथ को अपने कब्जे में ले लेती हैं। मंगलवार को हजारों लोगोंं की मौजूदगी में यह दृश्य हुआ और देव मिलन के बाद जब लोगों ने देव रथ को वापस लाना चाहा तो देव रथ एक जगह स्थिर हो गए।
देवता के भक्तजनों में देवरथ को लाने की लालसा बढ़ी और देव रथ में रस्सा लगाकर हजारों लोगों ने खींचना शुरू किया। किंतु हजारों लोगों के बल से भी देवरथ टस से मस नहीं हुए और एक जगह स्थिर रहे। देव हारियानों ने यह समझ लिया था कि आखिर उनके देवता रानियों के वश में कैद हो चुके हैं। लाख कोशिश करने के बाद भी लोग देव रथ को नहीं खींच पाए और बाद में हारियानों ने उपाय सोचा।
देव हारियानों को पता था कि 44 हजार रानियां को जो योगनियों का रूप हैं जुठ लगाने से देवता को छोड़ सकती हैं। हारियानों ने देव रथ में बांधे रस्से में जब जुठ लगाई तो देव रथ एकदम छूट गए और जय घोषों के साथ लोगों ने रथ को खींच कर वापस कोटला गांव पहुंचाया। जहां पर सैंकड़ों महिलाओं व अन्य लोगों ने परंपरागत तरीके से देवता का स्वागत किया और नया सवंत पर्व शुरू हुआ। याद रहे कि नया सवंत के दिन सृष्टि उत्पन्न हुई थी और देवता बड़ा छमांहु को ही सृष्टि का रचियता माना जाता है।
बड़ा छमांहु का अर्थ है छह समुह देवताओं का एक देव। यानिकि एक रथ में छह देवी-देवता वास करते हैं, जिसमें ब्रह्मा, विष्णू, महेश, आदी, शक्ति व शेष नाग समाहित है। यही कारण है कि जिस दिन सृष्टि उत्पन्न हुई थी उसी दिन देव बड़ा छमांहु भी उत्पन्न होते हैं आज के दिन हजारों लोग देवता के दर्शन के लिए कोटला गांव पहुंचे हैं।
देव इतिहास के मुताबिक जब प्रलय के बाद फिर से सृष्टि की रचना में ब्रह्म, विष्णु, महेश जुट गए तो उस समय सबसे पहले शक्ति व आदीअनंत को उत्पन्न करना पड़ा। इसके बाद इन पांचों देवताओं ने सृष्टि की रचना शुरू की और सुर्य, पृथ्वी, चांद सहित सभी ग्रहों को अपने-अपने स्थान पर स्थापित किया गया। बावजूद इसके जिस ब्रह्मंड में यह सभी ग्रह जलमग्र हुए थे को अपने-अपने स्थान पर स्थापित करने के बाद इनसे जो अतिरिक्त ऊर्जा उत्पन्न हुई थी वह प्रकट हुई और तबाही मचाते हुए अजगर की भांति आगे बढ़ रही थी तथा एक बार फिर से प्रलय की स्थिति बन गई थी।
पांचों देवी-देवताओं ने स्थिति को संभालते हुए इस अतिरिक्त ऊर्जा को काबू में करने के लिए इसे देवरूप धारण करने का आशीर्वाद दिया और फिर यह अतिरिक्त शक्ति पांचों देवताओं में सम्माहित होकर छमांहू का रूप धारण कर गई। उसके बाद से माना जाता है कि इन छ: शक्तियों के बिना सृष्टि की रचना अधूरी है और छमांहू देवता को सृष्टि का रचियता माना जाता है।