नाहन (शैलेंद्र कालरा): परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। एक भाई पुलिस में भर्ती हुआ तो आंशिक तौर पर आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। पिता इंद्र सिंह-मां इंद्रा देवी पर पांच बच्चों के लालन-पोषण की जिम्मेदारी थी। ऐसे में सुषमा कपूर को पढ़ाई आगे बढ़ाने में स्वाभाविक तौर पर मुश्किल तो आनी ही थी।
मूलत: ट्रांसगिरी क्षेत्र के पमता की रहने वाली सुषमा अक्तूबर 2013 में बीएससी के बाद बीएड कर पुलिस महकमे में बतौर लेडी कांस्टेबल भर्ती हो गई। इस वक्त सुषमा की पोस्टिंग जुनगा में है।
सुषमा का सपना केवल ओर केवल लेडी कांस्टेबल बनना नहीं था। नौकरी के साथ-साथ सब इंस्पेक्टर परीक्षा की पढ़ाई को जारी रखा। मेहनत का फल सुषमा को शनिवार शाम उस वक्त मिला, जब हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग महिला सब इंस्पेक्टर के 16 पदों का परिणाम घोषित किया। इसमें सबसे अधिक 184 अंक सुषमा को ही मिले थे। परिवार की लाडली टॉपर थी।
सोमवार सुबह एमबीएम न्यूज नेटवर्क ने जब सुषमा से सफलता पर बातचीत की तो सुषमा बेहद भावुक थी, क्योंकि परिवार ने सुषमा की पढ़ाई-लिखाई के लिए जो संघर्ष किया, उसके लिए बातचीत में भावुकता साफ झलक रही थी। एक सितंबर 1990 को जन्मी सुषमा ने साफ लहजे में कहा कि परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी, बाजवूद इसके परिवार ने उसकी पढ़ाई में हर संभव आर्थिक मदद की।
पांवटा कॉलेज से मेडीकल में बीएससी करने के बाद सुषमा ने बीएड भी की। सुषमा के बड़े भाई सुभाष कपूर भी पुलिस विभाग में कार्यरत हैं। जबकि दूसरे भाई परवेश कपूर को नौकरी की तलाश है। दो बड़ी बहनों की शादी हो चुकी है। सीधे-सादे स्वभाव की सुषमा को इस बात का अंदाजा तो था कि वह अंतिम परिणाम में चयनित हो जाएंगी, लेकिन टॉपर होंगी, इस बात का अंदाजा नहीं था।
क्या था टॉपर बनने का मूलमंत्र?
टॉपर बनने के लिए सुषमा ने परीक्षा में सफलता हासिल करना जुनून बनाया। प्रदेश से जुड़े सामान्य ज्ञान में महारथ हासिल की। सामान्य विज्ञान, राजनीतिक विज्ञान, सोशल साईंस के साथ-साथ सुषमा ने हिन्दी व अंग्रेजी के व्याकरण पर काफी ध्यान केंद्रित किया था। नौकरी के साथ-साथ सुषमा तीन से पांच घंटे का अतिरिक्त वक्त पढ़ाई के लिए निकाल लेती थी।