शिमला, 10 जुलाई : हिमाचल की बुशहर रियासत में 74 साल बाद एक ऐसा 12 मुखी ‘‘बमाण’’ बनाया गया है, जिस पर सवार होकर पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अपनी अनंत यात्रा (endless journey) पर निकले। राज्य के इतिहास में ये भी पहली बार हुआ होगा, जब 12 मुखी बमाण में एक राजा की पार्थिव देह (mortal body) तिरंगे में लिपटकर अनंत यात्रा पर निकली हो।
पदम पैलेस (Padam Palace) में अंतिम रात बिताने के बाद जब वीरभद्र सिंह की अंतिम यात्रा शुरू हुई तो मानों अपने राजा के हमेशा के लिए चले जाने पर शाही महल भी गमगीन हो। हजारों की तादाद में जनसमूह (Crowd) उमड़ पड़ा था। रियासत के डंसा, लालसा, कूहल व अन्य क्षेत्रों के कारीगर (Artisan) इसे शुक्रवार सुबह से ही बनाने में जुटे हुए थे।
बताया जा रहा है कि ऐसा बमाण करीब 74 साल पहले उस समय बनाया गया था, जब राजा वीरभद्र सिंह के पिता पदम देव का निधन हुआ था। बेशक ही 1971 में वीरभद्र सिंह से राजा की उपाधि (Title) ले ली गई हो, लेकिन वो राजा की तरह लोगों के दिलों में राज करते रहे। यही कारण था कि आज लाखों आंखें नम हो उठी। राजनीति में आने के बाद वो बुशहर रियासत तक सीमित नहीं रहे, बल्कि पूरे हिमाचल के राजा बन गए। बामण केवल राजा के निधन पर ही बनाया जाता है।
ऐसी भी परंपरा है कि राणा, ठाकुर व कुंवर का निधन होता है तो बामण 8 से 10 मुखी होता है। शुद्ध देवदार की लकड़ी से बनाए जाने वाले बामण में हाथी की जीभ निकले 12 मुख बनाए जाते हैं। साथ ही फूल-पत्तियों की नक्काशी (carving) भी इस पर की जाती है। बताया जा रहा है कि परिवार में पहले भी एक सदस्य की मृत्यु पर बामण बनाया गया था, लेकिन ऐसा बामण तो 74 साल बाद ही बना है।
बता दें कि जब 13 साल की आयु में वीरभद्र सिंह को रियासत की बागडोर मिली थी तो उस समय वो नाबालिग थे, लिहाजा बालिग होने तक रियासत की कमान राजमाता स्व. शांति देवी के पास रही थी। राज पुरोहित पूज्या देव शर्मा ने बताया कि बमाण बनाने की परंपरा बुशहर रियासत (princely state) में सदियों से निभाई जाती है। शनिवार सुबह 12 मुखी बामण को तैयार कर दिया गया था। चारों तरफ बैरिकेटस (barricades) लगाकर इसे सुरक्षित किया गया। बामण के चारों तरफ वाद्ययंत्रों (musical instruments) की गूंज भी सुनी जा रही थी। ये धुनें राजा के निधन के शोक को इंगित कर रही थी।
उल्लेखनीय है कि राजा के अनंत यात्रा पर निकलने के दौरान अलग धुन बजाई जा रही थी, बल्कि बेटे के राजतिलक की धुन हल्की खुशी वाली होती है। कुल मिलाकर रियासतों के समाप्त हो जाने के बाद ऐसी तस्वीर पहली बार ही सामने आई है, जब राजपरिवार के मुखिया की वास्तव में रियासतकाल की तरह अंतिम यात्रा हुई हो।
ये खास…
बुशहर रियासत के कारीगरों ने बमाण इस कारण बनाया, क्योंकि उनके शासक का निधन हुआ था। जबकि तिरंगे में पार्थिव देह इस कारण लिपटी थी, क्योंकि वो 6 बार मुख्यमंत्री रहे थे। इतना लंबी अवधि तक सीएम रहने का रिकाॅर्ड अब राज्य में शायद ही कोई तोड़ पाए। बामण व तिरंगे का मेल इतिहास में शायद पहली बार हुआ हो।
बुशहरी टोपी पहन किया संसार को अलविदा…
हमेशा टोपी को अपनी शान मानने वाले राजा वीरभद्र सिंह अपनी अनंत यात्रा पर भी बुशहरी टोपी पहन कर निकले। छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री सहित कांग्रेस के पवन कुमार बंसल, आनंद शर्मा, राजीव शुक्ला के अलावा पंजाब के पूर्व डिप्टी सीएम सुखबीर बादल भी उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे।