नाहन, 16 जून : आप तकरीबन पौने 12000 फीट की ऊंचाई पर “भगवान शिव” (Lord Shiva) की करीब 15-20 फीट ऊंची प्रतिमा के समक्ष शीश नवाज कर आशीर्वाद लेते हैं, लेकिन शायद ही आपने यह सोचा होगा कि भगवान शिव की भव्य प्रतिमा का श्रृंगार कौन करता है। तेज गति से बहती हवाओं के बीच “भगवान शिव” की प्रतिमा का श्रृंगार चुनौतीपूर्ण होता है। इस खबर में हम आपके लिए यह जानकारी लेकर आए है की कौन करता है श्रृंगार।
चूड़धार चोटी (Churdhar Peak) के अंतिम छोर पर शिव प्रतिमा के इर्द-गिर्द हवा की गति 90 से 100 किलोमीटर होती है। बेहद ऊंचाई पर स्थित प्रतिमा के आसपास सीधे खड़ा होना तक भी मुश्किल होता है। ऐसे में श्रद्धालुओं का प्रतिमा का “श्रृंगार” सराहनीय कार्य है। चूंकि प्रतिमा चारों दिशाओं से दिखाई देती है, लिहाजा श्रद्धालुओं के लिए दिशा सूचक का कार्य भी करती है।
शिरगुल महाराज (Shirgul Maharaj) की तपोस्थली ‘चूड़धार’ में इन दिनों श्रद्धालुओं का तांता लगा हुआ है। सबसे ऊंची जटिल चोटी पर स्थापित “शिव प्रतिमा” बेहद मनमोहक है। दूर-दूर से चोटी पर लगी शिव प्रतिमा को देखकर श्रद्धालुओं की आस्था व हौंसला बढ़ जाते हैं। प्रतिमा के शृंगार से भव्यता को बरकरार रखने की जिम्मेदारी भक्तों की है। इसी के मद्देनजर नाहन युवा शिव मंडल (Yuva Shiv Mandal Nahan) के 5 शिव भक्तों की टोली चोटी पर पहुंची थी। इस कार्य के लिए नाहन से अंकुर शर्मा, विश्वजीत शर्मा, दीपक कश्यप, सौरव गुप्ता व एक लुधियाना से पहुंचे श्रद्धालु अमरेंद्र सिंह ने सरहां (चौपाल) की तरफ से चोटी की चढ़ाई शुरू की थी। खड़ी चढ़ाई के बाद भक्त चूड़धार पहुंचे।
नाहन के रहने वाले विश्वजीत शर्मा ने एमबीएम न्यूज़ नेटवर्क (MBM News Network) से बातचीत में बताया कि मंडाह से पेंट चोटी तक पहुंचाने के लिए भाड़े पर खच्चर को लिया गया था। पहले प्रचीन चूड़धार मंदिर में शीश नवाज कर देवता से अनुमति ली गई। सोमवार सुबह करीब 7 बजे श्रृंगार (रोगन) का कार्य शुरू किया गया। 10-11 घंटे के बाद शाम 5 बजे कार्य पूरा हुआ। उन्होंने बताया कि कार्य जोखिमपूर्ण था। प्रतिमा के आसपास खड़े होने की जगह नहीं है, लिहाजा उन्हें इस कार्य के लिए “भगवान शिव” की प्रतिमा का ही सहारा लेना पड़ा।
युवा शिव मंडल के सदस्यों ने मशक्कत से संतुलन (Balance) बनाते हुए प्रतिमा (Idol) को बारीकी से संवारा। उन्होंने बताया कि चोटी (Peak) पर बेहद तेज हवाएं दिन भर चलती रहती हैं, जिसमें खुद को संभाल पाना बेहद मुश्किल है। ऐसे में आप खुद ही अंदाजा लगा सकते है कि कार्य में किस पैमाने का जोखिम रहा होगा।
विश्वजीत ने बताया कि वो हर साल प्रतिमा पर की सजावट करने पहुंचते हैं। उन्होंने बताया कि सर्दियों में बर्फबारी (Snowfall) के बाद प्रतिमा का रंग फीका पड़ जाता हैं। मई- जून माह से श्रद्धालुओं व पर्यटकों से चोटी गुलजार होती है। प्रतिमा चोटी पर पहुंचने वाले श्रद्धालुओं (Devotees) की आस्था (Faith) का प्रतीक है।
नौहराधार (Nohradhar) से तकरीबन 18 किलोमीटर की पैदल चढ़ाई कर चूड़धार पहुंचने वाले श्रद्धालुओं को दूर से प्रतिमा नजर आने लगती है तो पैदल चलने का हौसला बढ़ जाता है, साथ ही अपनी दिशा का भी ज्ञान हो जाता है।
वहीं, सोमवार के दिन ही प्रतिमा पर झंडे लगाने वालों का हुजूम भी उमड़ पड़ता है। 4 युवक “भगवा झंडों” समेत तिरंगे लेकर भी चोटी पर पहुंचे। नजारा बेहद खूबसूरत उस समय हो गया, जब श्रृंगार के बाद प्रतिमा के साथ चोटी पर “तिरंगा” भी लहराता नजर आया। नाहन निवासी मोहित, रविश, राहुल समेत अन्य युवा डंडों पर शिद्दत से तिरंगे व सनातनी भगवा झंडे लहराने की कोशिश में भी जुटे नजर आये। डंडों पर झंडे चढ़ाने के बाद मजबूती से चोटी की रेलिंग में फंसाया जाता है, ताकि तेज हवाओं के बावजूद टिके रहें।
युवकों ने बताया कि वह भी हर साल चोटी पर झंडे लेकर पहुंचते हैं। झंडे हवा में लहराते रहते हैं, जिससे यात्रियों को चोटी के छोर तक पहुंचने के लिए रास्ते का अंदाजा आसानी से हो जाता है।
फिर बता दें कि चोटी पर दिन भर मौसम तेजी से बदलता है। पल भर में धूप तो पल में काले बादल छा जाते हैं तो कभी धुंध के आगोश में चोटी समा जाती है। ऐसे में दूर से चटक रंग आकाश छूती चोटी के छोर पर नजर आ जाते हैं। बर्फबारी के दौरान भी कुछ श्रद्धालु जोखिम उठाकर चूड़धार पहुंचते हैं। ऐसे में भगवान शिव की प्रतिमा मददगार साबित होती है।