नाहन : सूबे की राजधानी से 30 सितंबर से 2 अक्टूबर के बीच प्लास्टिक मुक्त भारत के संदेश को लेकर दौड़ने वाले सिरमौरी लाल व दिव्यांग धावक वीरेंद्र सिंह की उपलब्धि में एक नया खुलासा हुआ है। आप जानकर चौंक जाएंगे कि धावक वीरेंद्र सिंह ने इस दौड़ को महज 600 रुपए के जूते पहनकर पूरा किया। हालांकि 300 व 400 रुपए की कीमत वाली कुछ जोड़ियां रखी गई थी। लेकिन इसी जुते के दम पर वीरेंद्र ने दौड़ को पूरा कर डाला। मूसलाधार बारिश में भी 27 साल का वीरेंद्र दौड़ता रहा। लिहाजा 600 रुपए वाले जूते भी फट गए, क्योंकि दौड़ने का साहस व जज्बा था।
अक्सर आप यह भी सोचते होंगे कि हर समय वीरेंद्र काले रंग के सन ग्लॉसेस क्यों पहने रखते है तो आप को यह भी जानना जरुरी है कि वीरेंद्र को एक आंख से दिखाई नहीं देता है। सीमित संसाधनों में भी वीरेंद्र ने मुकाम को हासिल कर दिखाया। आईपीएच में बेलदार के पद पर कार्यरत पिता के बेटे ने यह साबित कर दिखाया कि जज्बा हो तो राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय धावकों की तरह महंगे जूते व अन्य सुविधाओं की आवश्यकता नहीं पड़ती। एमबीएम न्यूज नेटवर्क को जब यह पता चला कि धावक ने मात्र 600 रुपए वाले जूते की जोड़े के दम पर न केवल 219 किलोमीटर की दूरी तय की तो उससे संपर्क किया गया। रुंधे गले से 27 साल के वीरेंद्र ने कई चौंकाने वाले खुलासे किए। उन्होंने कहा कि रास्ते में चावल व दही खाकर गुजारा करना पड़ रहा था।
उल्लेखनीय है कि इतनी लंबी दौड़ में चावल के सेवन की तो कोई डाइटिशियन सलाह दे ही नहीं सकता। हालांकि वीरेंद्र आयुर्वेदिक विभाग में फार्मासिस्ट के पद पर तैनात है। यहां से मिलने वाली 8 से 10 हजार रुपए की पगार से अपनी डाइट का ही खर्च उठा पाते हैं। बातचीत के दौरान वीरेंद्र ने कहा कि उन्हें तो दौड़ पूरी करने का जज्बा था। उन्होंने कहा कि चंडीगढ़ पहुंचने पर सूचना व प्रसारण मंत्रालय ने जोरदार स्वागत किया। एक सवाल के जवाब में वीरेंद्र ने कहा कि उन्हें आर्थिक मदद कहीं से नहीं मिली है। लेकिन वह कतई भी इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पूरी दौड़ पर मात्र 20 से 22 हजार का खर्चा आया। इसमें टीम के सदस्यों व वाहन के अलावा खाने का खर्चा था।
वीरेंद्र सिंह के मुताबिक वह अपने क्षेत्र के उन तमाम लोगों का दिल से आभार प्रकट करते हैं, जिन्होंने अंशदान देकर दौड़ को पूरा करवाने में अपनी मदद मुहैया करवाई। बहरहाल राज्य सरकार को अपने प्रदेश के इस तरह के हीरो को प्रोत्साहित करने के लिए ठोस कदम उठाने चाहिए। धावक वीरेंद्र मुलत: संगड़ाह उपमंडल के रिमोट गांव का रहने वाला है।