स्वतत्रंता दिवस
स्वतंत्रता दिवस का बंद करो ये आलाप
शहीदों का उपहास मत करो आप
कौन सी स्वतंत्रता है
किसे मना रहे हो
बेवकूफ बना कर मेरा
मखौल उड़ा रहे हो
शर्म नहीं आती तुमको
तिरंगा लहरा रहे हो
किसलिए
यूं झूठी खुशियां मना रहे हो
अंग्रेजों के चले जाने के
इतने सालों बाद भी
तुमने मेरा ये क्या हाल कर दिया
हिन्दू-मुस्लिम दंगों
बढ़ते भ्रष्टाचार
और नेताओं के कारनामों ने
मुझे बदनाम कर दिया
नैतिकता व मानवता का हनन
स्वदेशी संस्कृति और
ईमानदारी का नाश कर दिया
मैं खतरों से घिरी हूं
पहले मुझे बचाओ
जगह-जगह फट रहे हैं बम
सबकी दहशत मिटाओ
अंग्रेजों से तो
मुक्ति दिला दी मुझे
अब
भ्रष्टाचार, बेईमानी, कुशासन, अराजकता, लूट खसूट, अनैतिकता, सांप्रदायिकता,
भेदभाव से भी
मुझे स्वतंत्र कराओ
जाओ
पहले प्यार की फसल उगाओ
ईमानदारी के फूल खिलाओ
तब आकर
मेरी स्वतंत्रता का जश्र मनाओ
कवि पंकज तन्हा
काव्य संग्रह : ‘‘शब्द तलवार हैं’’
94590-23584
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