कुल्लू (एमबीएम न्यूज): 63 साल की इन्दिरा शर्मा अपनी मौत के बाद भी इस दुनिया में जीवित रहेंगी। शर्मा के नेक इरादों की वजह से यह संभव होगा। किसी के शरीर में दिल बनकर धडकेंगी तो किसी की आंखों की रोशनी बनकर दुनिया को देखती रहेंगी।
चौंकिए मत, यहां आपको देवभूमि की पहली देहदानी महिला इन्दिरा शर्मा से रू-ब-रू करवाया जा रहा है। अनाथ बच्चों के आश्रम के साथ-साथ वर्ष 2010 में जब पीजीआई गई तो बच्चों व लोगों का दर्द सहन नहीं कर पाई। मन में देहदान करने का विचार कौंधा तो इसे मूरत रूप बनाने का भी फैसला ले लिया। परिवार की आपत्ति भी हुई। पति इकबाल शर्मा ने मना भी किया, दो बेटे भी राजी नहीं थे। लेकिन अपने नेक इरादों व वजह को साझा किया तो परिवार भी सहमत हो गया।
अक्तूबर 2016 में देहदान कर चुकी इन्दिरा शर्मा अपने इस फैसले पर गौरव महसूस करती हैं, क्योंकि जानती है कि जीवन एक दिन खत्म होना है। एमबीएम न्यूज नेटवर्क से फोन पर हुई लंबी बातचीत में इन्दिरा शर्मा का कहना था कि वह यह सोचकर काफी रोमांचित हो जाती हैं कि उनका शरीर मरने के बाद कई लोगों के काम आएगा।
मूलत: मनाली की रहने वाली इन्दिरा शर्मा का बड़ा बेटा ट्रेवल एजेंसी चलाता है तो छोटा भी व्यवसायी है। खास बात यह है कि देहदान करने का विचार भाव बनकर चंडीगढ़ के अनाथ आश्रम से उठा, जो घर पहुंचते-पहुंचते संकल्प में बदल गया।
इस तरह से हुआ…
चंडीगढ़ में मरीजों को शरीर के अंग न मिलने के कारण जीवन व मौत के बीच संघर्ष करते देखकर इस कद्र व्यथित हो उठी कि पीजीआई प्रबंधन से मिली। देहदान की तमाम औपचारिकताएं पूरी की। 2009-10 के दौरान देहदान करने वाली पहली हिमाचली महिला बन गई। उनका यह भी कहना है कि जिंदगी की कीमत बिस्तर पर पड़े उस मरीज से अधिक कौन जान सकता है, जिसे अपनी हर सांस आखिरी लगती है।
वह बताती हैं कि देहदान करने के बाद ही परिवार को सूचित किया था, जो बाद में सहमत हुआ। कुल्लू में कालीचरण आहलुवालिया व दुर्गा देवी के घर जन्मी इन्दिरा शर्मा के जज्बे को आज पूरा प्रदेश सलाम करता है।
समाजसेवी के रूप में पहचान..
प्रदेश की पहली देहदानी महिला अपने इलाके में एक समाजसेवी के रूप में भी पहचान रखती हैं। गरीब की मददगार बनने में हर पल तैयार रहती हैं। इसमें उपचार हो या फिर रक्तदान, पीछे नहीं हटती हैं। खुद रक्तदान करने की स्थिति में न हो तो इंतजाम करने के लिए सबकुछ भूल जाती हैं। कोख में बेटियों के कत्ल से बहुत व्यथित होती हैं। कहती हैं, इस दिशा में भी कुछ करने का मौका मिला तो कुछ कर गुजरूंगी।