नाहन (रेणु कश्यप) : क्या आप जानते हैं कि सिरमौर में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की नजर में केवल एक ही मंदिर प्राचीन है। यह मंदिर है पच्छाद खंड के मानगढ़ में पांडवों द्वारा निर्मित शिव मंदिर। नाहन से 70 किलोमीटर दूर मानगढ़ में निर्मित इस शिव मंदिर को शोधकर्ताओं द्वारा 1500 साल पुराना बताया गया है।
विडंबना यह है कि एएसआई की फेहरिस्त में शामिल होने के बावजूद इस मंदिर को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तो दूर की बात है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर तक भी पहचान नहीं मिल पाई। बेशक ही सिरमौर में प्राचीन मंदिरों व स्मारकों की लंबी सूची हो सकती है, मगर एएसआई ने मात्र इसी मंदिर को तवज्जो दी।
हिमाचल के पर्यटन विभाग ने भी इस मंदिर को धार्मिक पर्यटन की दृष्टि से विकसित करने के लिए भी कोई कदम नहीं उठाए। सालों पहले इस मंदिर की भूमि पर अतिक्रमण की खबरें भी आ चुकी हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस मंदिर को देश के प्राचीन स्मारकों की सूची में 1995 में शामिल किया था। लेकिन 20 साल बीत जाने के बावजूद मंदिर को पहचान दिलाने में एएसआई कामयाब नहीं हो पाया।
क्या है मंदिर की अहमियत?
प्राचीन मंदिर के प्रमुख प्रवेश द्वार को बड़ी शिला (चट्टान) से काटकर बनाया गया है। इस पर अदभुत नक्काशी की मिसाल देखी जा सकती है, जो संभवत: आज के वक्त में नहीं की जा सकती। दिवारों पर खुदे नक्षत्र में केवल पांच ग्रह दिखाए गए हैं। अहम बात यह है कि जिस पत्थर से मंदिर का निर्माण हुआ है, वह पत्थर इस क्षेत्र में नहीं मिलता है।
लिहाजा यह माना जाता है कि बड़ी-बड़ी शिलाओं को कहीं दूर से इस स्थान पर पहुंचाया गया होगा। मंदिर के पिछले हिस्से में भी नक्काशी के बेजोड़ व अदभुत नमूने हैं। इसमें गाय को मारते हुए बाघ दिखाया गया है। बाघ को मारते हुए अर्जुन की तस्वीरें दिवार पर उकेरी गई हैं। शिव मंदिर के समीप ही एक कृष्ण मंदिर का भी निर्माण किया गया, जिसे स्थानीय भाषा में ठाकुरद्वारा कहा जाता है। इसका मतलब भगवान विष्णु का निवास स्थान।
ऐसा क्यों हो जाता है?
शिव मंदिर के समीप से एक नाला बहता है, जो चंद मीटर की दूरी पर एक विशाल जलप्रपात (झरना)का रूप ले लेता है। इसे सिरमौर का सबसे ऊंचा जलप्रपात भी समझा जाता है। इसकी लंबाई 122 मीटर है। 2003-04 में शिव मंदिर के समीप खुदाई के दौरान गणेश मंदिर भी मिला था, जिसका निर्माण गुप्तकाल की शैली में हुआ बताया जाता है।
पुरातत्व विभाग के कब्जे में लगभग दो बीघा भूमि है, इसमें खुदाई के दौरान कई अदभुत व प्राचीन वस्तुएं मिलती रही हैं। मात्र एक स्मारक परिचर के हवाले इस पूरे क्षेत्र के रखरखाव की जिम्मेदारी है।