एमबीएम न्यूज़ / शिमला
लगभग 15 किलोमीटर दूर पहाड़ी पर बसे तारादेवी मंदिर के गर्भगृह का निर्माण कार्य पूरा कर लिया गया है। इसे बनाने में तीन साल से अधिक समय लग गया। मां तारा के गर्भगृह को पहाड़ी शैली से बनाया गया है। शिमला जिले के रोहड़ू और किन्नौर जिले के पेशेवर कारीगरों ने इसका निर्माण किया। गर्भ गृह का निर्माण पूरा होने पर अब 20 जुलाई के शुभ मुहूर्त में तारादेवी को प्रतिमा को पुराने अस्थायी स्थान से हटाकर गर्भ गृह में स्थापित किया जाएगा। इससे पहले 14 से 19 जुलाई तक मंदिर परिसर में शतचंडी अनुष्ठान चलेगा, जिसमें 90 पंडित बैठेंगे। 20 जुलाई को सुबह 11 बजे माता तारा देवी की स्थापना नवनिर्मित गर्भगृह में कर दी जाएगी।
तारादेवी मंदिर का गर्भगृह पहाड़ी शैली में बनाया गया है। इसमें लकड़ी की नक्काशी की गई है। मंदिर परिसर में स्लेट से फ्लोरिंग भी की गई है। तारादेवी मंदिर के प्रबंधक अनिल का कहना हैं, कि इस मंदिर को बनाने के लिए शिमला जिले के रोहड़ू और किन्नौर जिले से पेशेवर कारीगर बुलाए गए थे। उन्होंने कहा कि एक दर्जन कारीगरों ने पुरातन पहाड़ी शैली में गर्भगृह का निर्माण किया। उन्होंने कहा कि 20 जुलाई को सुबह 11 बजे तारादेवी माता नए गर्भगृह में विराजेंगी।
इस गर्भगृह का निर्माण कार्य जनवरी 2015 में शुरू किया गया था। मंदिर में आने वाले भक्तों को बेसब्री से इस मंदिर के बनने का इंतजार है। तारा देवी मंदिर न केवल प्रदेश में, बल्कि देश भर के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है। यह भव्य धार्मिक स्थल स्थानीय लोगों के साथ-साथ बाहरी राज्यों से आने वाले पर्यटकों की श्रद्धा का विशेष केंद्र है। मंदिर में स्थानीय लोगों के साथ-साथ पर्यटकों का भी भारी संख्या में आना जाना है। नवरात्र पर्व के दौरान यहां मेलों का आयोजन होता है और श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
तारा देवी मंदिर, शिमला-कालका एनएच पर उपनगर शोघी से 5 किलोमीटर की दूरी पर चोटी पर स्थित है और इसकी समुद्र तल से ऊँचाई 6070 फीट की है। इस मंदिर तक सड़क मार्ग के अलावा पैदल भी पहुंचा जा सकता है। घने जंगल में बने इस मंदिर के आस-पास एक आदर्श पिकनिक स्पॉट भी है। शिमला घूमने वाले पर्यटक इस मंदिर के दर्शन के साथ-साथ आसपास के मनोरम दृश्यों का भी आनंद लेते हैं।
कहा जाता है कि यह मंदिर 250 से भी अधिक साल पहले बनाया गया था, यह मंदिर तारों की देवी को समर्पित किया गया था। प्रचलित कथाओं के अनुसार देवी अपने भक्तों पर नज़र रखती है और उन पर अपने आशीर्वादों की झड़ी लगा देती हैं। स्थानीय लोगों की माने तो राजा भूपेंद्र सेन ने मां का मंदिर बनवाया था। ऐसा माना जाता है कि एक बार भूपेंद्र सेन तारादेवी के घने जंगलों में शिकार खेलने गए थे। इसी दौरान उन्हें मां तारा और भगवान हनुमान के दर्शन हुए। मां तारा ने इच्छा जताई कि वह इस स्थल में बसना चाहती हैं ताकि भक्त यहां आकर आसानी से उनके दर्शन कर सके। इसके बाद राजा ने यहां मंदिर बनवाना शुरू किया। राजा ने अपनी ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा मंदिर बनवाने के लिए दान कर दिया। कुछ समय बाद मंदिर का काम पूरा हो गया और लकड़ी की बनी मां की मूर्त यहां स्थापित कर दी गई। इसके बाद शासक हुए बलबीर सेन को भी मां ने दर्शन दिए जिसके बाद सेन ने अष्टधातु की मूर्त यहां स्थापित की और मंदिर का निर्माण किया।
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