वी कुमार /मंडी :
आज के आधुनिक युग में कई ऐसे प्राचीन प्रमाण मौजूद हैं, जो विज्ञान की समझ से परे है। ऐसे प्रमाणों को दैवीय चमत्कार के सिवाय और दूसरी कोई परिभाषा नहीं दी जा सकती। ऐसा ही दैवीय शक्ति का प्रमाण है पराशर झील। इस झील के बीच एक भू-खंड है, जो अपने आप चलता है और अपनी दिशा बदलता रहता है।
मुख्यालय से करीब 56 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है, देवता पराशर ऋषि का प्राचीन मंदिर और झील। इस झील का नाम पराशर ऋषि के नाम पर ही पड़ा। पुराणों के अनुसार ऋषि पराशर ने इस स्थान पर तप किया था। मंदिर का निर्माण 14वीं और 15वीं शताब्दी में रियासत के तत्कालीन राजा बानसेन ने करवाया था, लेकिन झील के बारे में किसी को कोई जानकारी नहीं है।
माना जाता है कि जबसे सृष्टि का निर्माण हुआ, तभी यह झील भी बनी होगी । 9100 फुट की उंचाई पर बनी इस झील में पानी कहां से आता है और कहां जाता है, किसी को कोई ज्ञान नहीं, लेकिन यह पानी ठहरा हुआ भी नहीं है। इस झील के बीच में एक भू-खंड है और यही भू-खंड यहां किसी दैवीय शक्ति के होने का प्रमाण देता है। यह भू-खंड एक प्रकार से पृथ्वी के अनुपात को भी दर्शाता है।
यह भू-खंड एक स्थान पर नहीं रहता, बल्कि चलता रहता है। कभी यह एक छोर पर नजर आता है तो कभी दूसरे छोर पर। पराशर देवता मंदिर कमेटी के प्रधान बलवीर ठाकुर बताते हैं कि वर्षों पहले यह भू-भाग सुबह पूर्व की तरफ होता था और शाम को पश्चिम की तरफ। इसके चलने और रूकने को पुण्य और पाप के साथ जोड़कर देखा जाता है। हालांकि अब यह भू-खंड कभी कुछ महीनों के लिए एक ही स्थान पर रूक भी जाता है और कभी चलने लग जाता है।
कुछ लोगों ने इस भू-खंड को रोकने का प्रयास भी किया था, लेकिन वो इसमें सफल नहीं हो सके और देवता से क्षमा याचना करके माफी मांगी थी। इलाके के दर्जनों देवी-देवता इस पवित्र झील के पास आकर स्नान करते हैं। पुजारी देवलुओं के साथ देवरथों को झील के पास लाते हैं और यहां के पानी से देवरथों का स्नान करवाते हैं।
पराशर झील की गहराई को आज दिन तक कोई नहीं नाप सका। हालांकि विज्ञान के लिए यह खोज का विषय हो सकता है, लेकिन वैज्ञानिक भी इस स्थान तक पहुंच नहीं पाए हैं। मंदिर कमेटी के प्रधान बलवीर ठाकुर बताते हैं कि सदियों पूर्व एक राजा ने झील की गहराई रस्सियों से नापने की कोशिश की थी, लेकिन सफलता नहीं मिली।
ऐसा भी बताया जाता है कि कुछ दशक पूर्व एक विदेशी महिला ऑक्सिजन सिलेंडर के साथ इस झील में गई थी, लेकिन उसके साथ अंग्रेजी में संवाद करने वाला कोई नहीं था, जिस कारण यह मालूम नहीं चल सका कि वो झील में कितना नीचे तक गई थी। झील के अंदर क्या रहस्य है इस बात का पता आज दिन तक कोई नहीं लगा सका है।
पराशर ऋषि मंदिर और इस झील के प्रति लोगों की भारी आस्था है। यह मंदिर पैगोड़ा शैली में बना है और इसका सुंदर नजारा देखते ही बनता है। बलवीर ठाकुर बताते हैं कि मंदिर में मांगी गई हर मुराद पूरी होती है और यदि किसी को कोई शारीरिक कष्ट हो तो देवता के आदेश पर वो कुछ दिन यहां रूककर झील के पानी का सेवन करता है, जिससे उसकी बीमारियां दूर हो जाती हैं।
इसके साथ ही दंपति यहां पुत्र प्राप्ति के लिए भी आते हैं। पराशर मंदिर सिर्फ गर्मियों के मौसम में ही जाया जा सकता है और यही कारण है कि आजकल यहां श्रद्धालुओं की भरमार देखने को मिल रही है। आए हुए श्रद्धालु मनोज सूद, टिकी देवी और किरण कुमारी ने बताया आजकल मंदिर में आने का सही समय होता है। गर्मी से निजात भी मिल जाती है, देवता के दर्शन करके आशीर्वाद भी प्राप्त हो जाता है और पवित्र झील को देखकर इसका पानी पीने का सौभाग्य भी मिल जाता है।
पराशर ऋषि को मंडी रियासत के राजपरिवार का विशेष देवता माना गया है। राजपरिवार के सभी सदस्यों के मुंडन संस्कार इसी मंदिर में आकर करवाते हैं। पहले मंदिर तक पैदल पहुंचा जाता था, लेकिन अब सड़क का निर्माण हो चुका है।