मंडी (वी कुमार): देवभूमि हिमाचल प्रदेश के साथ सिक्ख धर्म का भी विशेष लगाव रहा है। सिक्खों के दसवें गुरू गोबिंद सिंह जी 331 वर्ष पहले देवभूमि में न सिर्फ आए थे, बल्कि 6 महीनों तक यहां पर रूक कर यहां की रक्षा का वचन भी देकर गए थे। आज भी गुरू गोबिंद सिंह जी की प्राचीन स्मृतियां यहां देखने को मिलती हैं।
मनाली-चंडीगढ़ नेशनल हाईवे-21 पर जिला के साथ ब्यास नदी के किनारे पर स्थित है एक सुंदर गुरूद्वारा। सुंदरता के साथ-साथ यह गुरूद्वारा प्राचीन एवं ऐतिहासिक भी है, क्योंकि यहां पर गुरू गोबिंद सिंह जी की स्मृतियां मौजूद हैं। सिक्खों के दसवें गुरू, गुरू गोबिंद सिंह जी वर्ष 1686 को मंडी जनपद में आए थे। सबसे पहले उनका आगमन रिवालसर में हुआ था। वहां से जिला के तत्कालीन राजा सिद्ध सेन उन्हें पूरे मान-सम्मान के साथ जिला लेकर आए थे।
हालांकि राजा ने उन्हें अपने महल में रखा लेकिन गुरू गोबिंद सिंह ने जिला के बाहर इस स्थान पर रहने का निर्णय लिया। यहां पर गुरू गोबिंद सिंह 6 महीने 18 दिन रूके। इस दौरान राजा ने उन्हें जो बंदूक, बारूद भरने की कूपी, पलंग, तलाई और रबाव भेंट की वह आज भी यहां मौजूद है। 331 साल पुरानी बंदूक 18 किलो वजनी है और इसकी लंबाई 7 फीट 4 इंच है।
गुरू गोबिंद सिंह जब जिला छोड़कर जाने वाले थे तो उन दिनों राजा को बाहरी आक्रमणों का डर सता रहा था। राजा ने गुरू महाराज से सुरक्षा का वचन मांगा। राजा को गुरू महाराज ने अपने अंदाज में वचन दिया। ब्यास नदी के बीचों-बीच कोलसरा चट्टान पर खड़े होकर एक हांडी को नदी में फैंका। फिर इस हांडी पर बंदूक से निशाना साधा लेकिन हांडी को कुछ नहीं हुआ।
ऐसे में गुरू गोबिंद सिंह ने राजा को कहा कि- “जैसे बची है हांडी-वैसे बचेगी मंडी, जो मंडी को लूटेंगे-आसमानी गोले छूटेंगे।” गुरू गोबिंद सिंह की कही हुई यह बात इतिहास के पन्नों में भी दर्ज है। यही कारण है कि इस ऐतिहासिक गुरूद्वारे में रखी गुरू महाराज की प्राचीन एवं ऐतिहासिक स्मृतियों के दर्शनों के लिए लोग दूर-दूर से यहां खींचे चले आते हैं। सिक्ख श्रद्धालू इन स्मृतियों के दर्शन करके खुद को सौभाग्यशाली महसूस करते हैं।
जिला के इस प्राचीन गुरूद्वारे में श्रद्धालुओं के रहने-खाने की पूरी व्यवस्था मौजूद है। यहां 24 घंटे लंगर चला रहता है और श्रद्धालुओं के रहने के लिए सरायों का पूरा प्रावधान है। स्थानीय गुरूद्वारा प्रबंधन कमेटी गुरूद्वारे का संचालन करती है और वर्ष में सिक्ख धर्म के सभी बड़े पर्वों पर यहां भव्य आयोजन किए जाते हैं।