नाहन – वन्य प्राणी विभाग श्री रेणुका जी ने कछुओं के अंडो को संरक्षित कर उनके प्रजनन का कारनामा कर दिखाया है। कछुए की इस प्रजाति को पिकॉक साफट शैल के रूप में चिन्हित किया गया है। यह भी बता दें कि वर्ल्ड कंजरवेशन ने कछुए को रेड लाईट श्रेणी में रखा है। वन्य प्राणी क्षेत्र रेणुका जी में 28 सिंतबर 2012 को विभाग के एक कर्मचारी बेसू राम ने मादा कछुए को झील के किनारे अंडे देते देखा और इसकी सूचना अधिकारियों को दी। विभाग ने अंडो को संरक्षित स्थान पर दबाया और जब करीब 9 माह बाद 2 अंडो को निकालकर तोडा तो इसमंे से कछुए निकल आए। यहां अभी तक 20 कछुए जन्म ले चुके है। खास बात यह भी है कि मादा कछुआ अंडे देने के बाद उनके पास वापिस नहीं लौटती। इसी कारण विभाग को संरक्षण प्रदान करने में आसानी हुई। कछुओं की प्रजातियां इस कारण भी चिंता की वजह है क्योंकि कछुओं को जन्म लेने से पहले अंडो को जंगली जानवर उसे नष्ट कर देते है। यही कारण है कि कछुओं की जन्म दर 5 फीसदी के आसपास रहती है। रेणुका में सफल कारनामा कर दिखाने के बाद उत्साहित वन्य प्राणी विभाग को बेहतर नतीजे मिले है। लिहाजा अब यहां हैचिंग केंद्र स्थापित किए जाने की बात भी हो रही है। पानी में रखने पर अंडो से कछुए आसानी से निकल आते है। विभाग ने इसका प्रयोग भी कर दिखाया है। इससे पहले अंडो को तोडकर कछुओं को निकाला जा रहा था। विभाग द्वारा यह भी कोशिश की जा रही है कि शेष अंडो का प्रजनन कुदरती तौर पर हो। चीन में कछुओं के अंगांे का इस्तेमाल दवाओं में किया जाता है लिहाजा बाजारों में इसकी भारी कीमत होती है।
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