नाहन (रेणु कश्यप) : यहां बात होगी एक ऐसे पिता की, जिसने पत्थर तोड़ कर अपनी बेटी को होनहार बनाया। यह स्टोरी अपने आप में न केवल भावनात्मक है, बल्कि प्रेरणा से भी ओत-प्रोत है। अंधेरी गांव के रतन सिंह मात्र तीसरी कक्षा तक ही पढ़े। मिस्त्री का काम करते हैं। लेकिन बेटी के लिए एक ऐसा सपना देखा, जो आज मूरत रूप लेकर मिसाल बन गया है।
दसवीं उत्तीर्ण की ही थी कि पिता बीमार पड़ गए। घर में रोजी-रोटी का कोई इंतजाम नहीं था तो पढ़ाई कैसे कर पाती। नतीजतन तीन साल तक पढ़ाई ही नहीं की। पिता स्वस्थ हुए तो फिर पत्थर तोडऩे लगे। तब जाकर अंबरा की पढ़ाई फिर शुरू हुई। पिता ने बेटी की पढ़ाई में कोई कमी नहीं आने दी। बेटी अंबरा भी अपने पिता के इस संघर्ष को बचपन से ही समझ रही थी। 2012 में संगड़ाह कॉलेज से ग्रैजुएशन की शिक्षा पूरी की।
2014 में हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय से एमए की पढ़ाई पूरी करने के बाद जेआरएफ क्वालीफाई किया। बुधवार की शाम जब हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग ने कॉलेज कैडर के सहायक प्रोफैसर के पद का नतीजा घोषित किया तो रतन सिंह की आंखों में आंसू छलकना लाजमी था, क्योंकि बेटी कामयाब हुई थी। ताउम्र पत्थरों के साथ जूझते रतन सिंह की मेहनत रंग जो ले आई थी।
समूचा गांव आज देख रहा है कि तीन जमात पास पिता ने मेहनत-मजदूरी करके अपनी बेटी को काबिल बना दिया है। छोटे भाईयों को अब पढ़ाई के खर्च की चिंता नहीं है, क्योंकि बड़ी बहन ने मुकाम हासिल कर लिया है। घर का गुजर-बसर भी अच्छा होगा।
यह भी है अहम..
इस स्टोरी में एक अहम बात ओर छिपी है। 29 साल की हो चुकी अंबरा ने उच्चशिक्षा प्राप्त करने के बावजूद शादी की नहीं सोची क्योंकि पिता की छाया में रहकर ही सफल होकर दिखाना चाहती थी। अब पिता बेटी के हाथ पीले करने की भी सोच रहे होंगे। गौरतलब है कि अंबरा पीएचडी में दाखिला लेने के लिए इस समय शिमला में है।