हमीरपुर (एमबीएम न्यूज़) : सब कुछ संकर तथा वैज्ञानिक तरीकों से सब्जियों को उगाने की दौड़ में कुदरती तौर पर बरसात के दिनों में उगने वाला खुद-रौ मशरूम लुप्त होने के कगार पर पहुंच चुका है। अगर आधुनिकता की दौड़ में हमने पर्यावरण को बचाने के तौर तरीकों का न अपनाया तो वह समय दूर नहीं जब खेतों, खलिहानों, वाम्बियों आदि में उगने वाला अति पौष्टिक सब्जी खुद-रौ मशरूम के किताबों, कहानियों तथा दंत कथाओं तक ही सीमित होकर अपना अस्तित्व खो देगा।
वयोवृद्ध किसानों ने अपनी यादें ताजी करते बताया कि आजकल वैज्ञानिक विधि से घरों के अंदर मशरूम उगाने की परंपरा चल रही है, जोकि काफी मंहगी भी है और ऐसे संकर विधि से उगाए जाने वाले मशरूम स्वाद तथा गुणवत्ता में नैचुरल तौर पर उगे मशरूम का मुकाबला नहीं कर सकते।
उन्होंने बताया कि दशकों पहले बरसात के दिनों में जब वर्षा दो या तीन दिन लगी रहती थी तो खेतों तथा बीहड़ो व बाम्बियों के ऊपर मशरूम खुद ही उगी हुई मिला करती थी। यह मशरूम लंबाई में एक मीटर तक लंबी होती थी और इनसे बड़ी छतरी के रूप में भी मशरूम मिला करती थी।
उन्होंने इसके लिए खेती के लिए डाली जाने वाली अंधाधुंध रासायनिक खादों को भी इसके लिए जिम्मेदार बताते हुए कहा कि जब से रासायनिक खादों का इस्तेमाल होना शुरू हो गया। आज हालात
यह है कि खुद-रौ मशरूम बरसात के समय ढूढें से भी नहीं मिलता है।