नाहन (एमबीएम न्यूज): करीब 5 किलोमीटर शिव मंदिर पौड़ीवाला अपने आप में एक रोचक इतिहास संजोए है। यह मंदिर स्वर्ग की दूसरी सीढ़ी के नाम से भी प्रसिद्ध है। यहां की प्राकृतिक सुंदरता इस स्थल को श्रद्धालुओं की विहार स्थली बना देती है। चारों ओर साल व अन्य पेड़ों के बीच में कल-कल करता पानी का चश्मा, दिन में पेड़ों के बीच आंख मिचौली करते सूर्यदेव यहां की सुंदरता को चार चांद लगा देते हैं।
हर साल शिवरात्रि के मौके पर यहां दूर-दूर से श्रद्धालुओं की आना होता है। नेशनल हाइवे-72 पर अंबवाला से इस मंदिर की दूरी 1.5 किलोमीटर है। आज यह मंदिर श्रद्धा एवं भक्ति का अपार संगम है। दूर-दूर से भक्त यहां भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने आते हैं। साथ ही पवित्र शिवलिंग के दर्शन करके अपने जीवन को सार्थक एवं सफल समझते हैं।
जौ के दाने के बराबर हर वर्ष बढ़ता है शिवलिंग
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर में मौजूद शिवलिंग एक दिव्य शिवलिंग है। यह शिवलिंग हर वर्ष जौ के बराबर बढ़ता है। ऐसी धारणा है कि मंदिर में भोले शंकर प्रत्यक्ष रूप में विराजमान हैं। पिछले कुछ सालों में मंदिर ने नया स्वरूप लिया है, लेकिन मंदिर में प्राचीन स्थान के मूल स्वरूप से छेड़छाड़ नहीं की गई है। शुक्रवार को शिवरात्रि के पर्व पर आज भी प्राचीन मंदिर में शीश नवाजने नाहन के अलावा पड़ोसी राज्य के श्रद्धालु भी बड़ी संख्या में पहुंचे।
लंकापति रावण ने स्वर्ग की दूसरी सीढ़ी यहां की थी निर्मित
इस मंदिर का इतिहास लंकापति रावण के साथ जोड़ा जाता है। कहा जाता है कि रावण ने अमरता प्राप्त करने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की। तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने रावण को वरदान दिया कि यदि वह एक दिन में पांच पौडिय़ा निर्मित कर देगा, तो उसे अमरता मिल जाएगी। इसके बाद रावण ने पहली पौड़ी हरिद्वार में हर की पौड़ी, दूसरी यहां शिव मंदिर पौड़ीवाला, तीसरी चूड़ेश्वर महादेव व चौथी किन्नर कैलाश में बनाई। इसके बाद रावण को नींद आ गई। जब वह जागा तो अगली सुबह हो चुकी थी। मान्यता है कि पौड़ीवाला शिव मंदिर में साक्षात शिव शंकर भगवान विद्यमान है, जहां आने वाले हर श्रद्धालु की सब मनोकामना पूर्ण होती है।
महाभारत युद्ध के दौरान पूजा के लिए पांडवों ने यहां डाला था पहला पड़ाव
जनश्रुतियों के आधार पर इस मंदिर की कथा महाभारत काल से जुड़ी हुई है। महाभारत युद्ध के पश्चात पांचों पांडव अपने वफादार कुत्ते के साथ जब स्वर्गारोहण के लिए अग्रसर हुए तो उन्होंने भगवान शिव का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए अपनी पूजा का पहला पड़ाव शिव मंदिर पौड़ीवाला में डाला। यहां पर पांडवों ने एक शिवलिंग की स्थापना की, जो आज भी स्थापित है।
भगवान शिव की तपस्या का पहला पड़ाव होने की भी मान्यता
इस मंदिर की एक अन्य कथा के बारे में यह भी मान्यता है कि सतयुग में भगवान शिव के श्राप ग्रस्त होने की कहानी है। कथा के अनुसार सतयुग में निकटवर्ती पूजा स्थल यादबद्री में जनकल्याण के लिए देवताओं की एक सभी हुई। इसमें महर्षि नारद ने सभी देवताओं के सम्मुख एक प्रश्न रखा कि आज की सभा का अध्यक्ष सृष्टि का सबसे बड़ा देवता होगा।
इस पर ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव आपस में झगड़ पड़ेे। क्रोधित होकर शिव ने त्रिशुल से ब्रह्मा के पांच शीषों में से एक शीष काट दिया। इससे शिव को ब्रह्मा हत्या का दोष लग गया। दोष निवारण के लिए शिव ने धरती का चप्पा-चप्पा छान मारा। मगर कहीं भी कोई उपाय न मिला। अंत में एक गाय व बछड़े का अनुसरण करते हुए शिव ने कपाल मोचन नामक तीर्थ में तपस्या की व मुक्ति पाई।
ब्रह्मा हत्या के श्राप से मुक्त होने के बाद देवताओं की यादबद्री में पुन: सभा हुई। इस सभा के समापन के पश्चात भगवान शंकर हिमालय पर्वत की ओर संसार की मुक्ति का मार्ग बनाने निकले पड़े। अपनी तपस्या का पहला पड़ाव उन्होंने पौड़ी वाला में बनाया। इसी पौड़ीवाला को स्वर्ग की दूसरी पौड़ी की संज्ञा दी। यही घोर तपस्या करके व इस स्थली को पवित्र करने के पश्चात प्रभु ने कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान किया।