मंडी (वी.कुमार) : राज्य सरकार आयुर्वेदा डाक्टरों पर कुछ ज्यादा ही मेहरबान होती हुई नजर आरही है। गत दिनों जहां एक निजी चैनल ने राज्य सरकार के उस फैसले का खुलासा किया था जिसमें आयुर्वेदा डाक्टरों को एलोपैथी का ईलाज करने का आदेश दिया था वहीं अब यह बात सामने आई है कि स्कूल हेल्थ प्रोग्राम को भी आयुर्वेदा डाक्टरों के हवाले कर दिया गया है। हिप्र मेडिकल आफिसर एसोसिएशन ने इसका विरोध किया है।
इसे हिमाचल प्रदेश की बदकिस्मति ही कहा जाएगा कि यहां पर आयुर्वेदा के लिहाज से करने को तो बहुत कुछ है लेकिन करने वालों में इच्छाशक्ति की भारी कमी है। यही कारण है कि राज्य सरकार और स्वास्थ्य विभाग आयुर्वेदा के डाक्टरों को उनकी अपनी प्रणाली से हटकर एलोपैथी की तरफ अग्रसर करने में लगे हुए हैं। बीते दिनों निजी चैनल द्वारा आरटीआई के तहत हासिल जानकारी के आधार पर खुलासा किया था कि प्रदेश में एलोपैथी का ईलाज आयुर्वेदा के डाक्टर कर रहे हैं। वहीं अब यह बात सामने आई है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों में चल रहा स्कूल हेल्थ प्रोग्राम भी आयुर्वेदा के डाक्टरों के हवाले किया जा रहा है। करीब 50 डाक्टरों को इसकी जिम्मेदारी दे दी गई है। इस बात का खुलासा किया है हिमाचल प्रदेश मेडिकल आफिसर एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष डा. जीवानंद ने। उन्होंने बताया कि एनएचएम यानी नेशनल हेल्थ मिशन ने इस बारे में आदेश जारी कर दिए हैं जिसका इनकी एसोसिएशन ने विरोध किया है। इन्होंने सरकार से मांग उठाई है कि इस आदेश को तुरंत प्रभाव से वापिस लिया जाए।
डा. जीवानंद का आरोप है कि विभाग के उच्चाधिकारी एनएचएम के पैसे का दुरूपयोग करने में लगे हुए हैं। उन्होंने कहा कि एलोपैथी के डाक्टर आयुर्वेदा पद्दति का कतई विरोध नहीं कतरे बल्कि यह चाहते हैं कि इस पद्दति को इसी की राह पर आगे बढ़ाया जाए। इनका कहना है कि ब्यूरोक्रेसी जमीनी हकीकत से दूर हटकर रातों रात योजनाएं बनाकर उन्हें लागू करने में लगी हुई है और जब योजनाएं फेल हो जाती हैं तो उन्हें बंद कर दिया जाता है।
बता दें कि प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में डाक्टरों की भारी कमी चल रही है और स्वास्थ्य मंत्री हर बार एक ही बात कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं कि हर मंगलवार को डाक्टरों के पद भरने के लिए इंटरव्यू किए जा रहे हैं। अगर हकीकत में डाक्टरों के पद भरे जा रहे हैं तो फिर एलोपैथी पद्दति को सुचारू रूप से चलाने के लिए आयुर्वेदा के डाक्टरों का सहारा क्यों लिया जा रहा है। यह एक गंभीर सवाल है जिसका जबाव देने से सरकार का हर नुमाईंदा कन्नी काटता है।