नाहन (रेणु कश्यप): सिरमौर के दुर्गम क्षेत्र की जरवा जुनैली पंचायत के डाहर (अदवाड़) गांव से निकल कर खुद को स्थापित करने का प्रयास किया। कड़ी मेहनत अब रंग लाने लगी है। तकरीबन छह साल पहले कंप्यूटर स्थापित किया था। उस समय तीन स्टुडेंटस थे, जिनकी संख्या बढक़र आज 200 के आसपास पहुंच चुकी है।
सूर्यवंशी ने यह साबित किया है कि कड़ी मेहनत की जाए तो कोई मुकाम पाना मुश्किल नहीं है। कौशल विकास भत्ते में आज सूर्यवंशी बेहतरीन तरीके से अपने कंप्यूटर AISECT को चला रहे हैं। सोचिए, अगर मदन ने सरकारी नौकरी के पीछे भागमभाग की होती तो आज शायद इतने कामयाब नहीं होते, क्योंकि सरकारी नौकरी में ज्यादा से ज्यादा अनुबंध पर नौकरी कर रहे होते। लेकिन अब न केवल युवाओं के लिए प्रेरणा का स्त्रोत बन गए हैं, बल्कि खुद के परिवार को भी आर्थिक तौर पर सहारा दिया है।
एमबीएम न्यूज से बातचीत में मदन सूर्यवंशी ने कहा कि युवाओं को सरकारी नौकरी की बजाय निजी क्षेत्र में अपनी काबलियत का लोहा मनवाना चाहिए, क्योंकि यहां आसमान ही सीमा है। उनका कहना है कि सिरमौर की प्रतिभाओं को मंच प्रदान करने के मकसद से दो मर्तबा सिरमौर उत्सव का भी आयोजन किया, लेकिन कुछ कारणों से इसे बंद करना पड़ा। सूर्यवंशी का कहना है कि अगर मौका मिला तो वह दोबारा एक ऐसा मंच तैयार करेंगे, जिससे सिरमौर की प्रतिभा को सामने लाया जा सके।
पारिवारिक सदमे ने बढ़ा दी थी जिम्मेदारी।
29 वर्ष के हो चुके मदन सूर्यवंशी उस समय छठी कक्षा में पढ़ते थे, जब महाराष्ट्र के पुणे में हुई सडक़ दुर्घटना में दोनों भाईयों को खो दिया। अचानक ही परिवार पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा। पिता का चला चलाया कारोबार ठप हो गया। मां को सदमे से गुजरना पड़ा, इस कारण हार्ट का ऑपरेशन हुआ। इन तमाम कठिनाईयों को पार करते हुए मदन ने न केवल अपनी पढ़ाई पूरी की, बल्कि नाहन आकर खुद का एक कंप्यूटर सैंटर शुरू किया। 6 साल के भीतर ही परिवार की आर्थिक स्थिति सुधारी। एक बहन की शादी की जिम्मेदारी अपने एक दूसरे भाई के साथ मिलकर उठाई। चार भाईयों व दो बहनों के परिवार में मदन को अपने एक भाई सतपाल का सहारा भी उस वक्त मिला, जब वह सेना में भर्ती हुए।