हमीरपुर (एमबीएम न्यूज) : कारगिल युद्ध में शहादत प्राप्त करने वाले दलीप सिंह गुलेरिया युवाओं के लिए प्ररेणास्रोत हैं। पिता के नक्शेकदम पर चलकर दिलीप सिंह गुलेरिया ने आर्मी ज्वाइन की थी। पिता से मिली देशभक्ति की प्रेरणा से प्रेरित होकर इस वीर जवान ने वर्षों तक सेना में अपनी सेवाएं दी। इस दौरान उन्होंने सेना के कई आप्रेशनों में दुश्मनो को धूल चटाई।
शहीद दलीप सिंह का परिवार पीढिय़ों से देश की सेवा करता आ रहा है। पहले पिता आर्मी में थे, फिर स्वयं आर्मी ज्वाइन की और इन दिनों एकलौता बेटा रवि कुमार भी आर्मी में सेवाएं दे रहा है। दलीप सिंह गुलेरिया का जन्म 10 अक्तूबर 1956 को गांव बल्ह डाकघर मोहीं तहसील व जिला हमीरपुर में मुंशी राम के घर हुआ। उन्होंने दसवीं तक की शिक्षा हमीरपुर में ही प्राप्त की।
पिता के आर्मी में होने के कारण शुरू से ही आर्मी ज्वाइन करने का सपना था। 1979 को उन्होंने आर्मी ज्वाइन की। वे 10 डोगरा रेजिमेंट में भर्ती हुए। वर्षों सेवाएं देने के उपरांत उन्हें सूबेदार बनाया गया। 1999 में हुए कारगिल युद्ध में उन्होंने अपनी टुकड़ी के साथ मोर्चा संभाला। इस दौरान उन्होंने देश के कई दुश्मनो को मार गिराया। 8 सितंबर 1999 को दुश्मनो की गोलियां दलीप सिंह गुलेरिया के सीने के पार हो गईं। जख्मी हालत में भी उन्होंने अपनी टुकड़ी के जवानों का हौंसला बनाए रखा। गंभीर घायल होने के कारण उन्होंने इसी दिन दम तोड़ दिया।
इस वीर जवान को मरणोपरांत वीरता पुरस्कार शौर्यचक्र से नवाजा गया। उनकी पत्नी सरला देवी ने बताया कि देश के लिए दी गई पति की शहादत पर उन्हें गर्व है। बेटा रवि कुमार भी उनके कदमों पर चलकर 10 डोगरा रेजिमेंट में भर्ती हुआ है। उन्होंने बताया कि देश के लिए प्राणों का बलिदान देने वाले वीर को सरकार भूल गई है। कई बार मांग के बाद भी दलीप सिंह का शहीद स्मारक नहीं बनाया गया।
उन्होंने सरकार से मांग की है कि शहीद की शहादत को नजर अंदाज न किया जाए। शहीद के नाम पर शहीद स्मारक बनाया जाए, ताकि उनकी शहादत को सदियों तक याद रखा जा सके।