नाहन (शैलेंद्र कालरा) : हिमाचल-उत्तराखंड की सीमा पर पवित्र यमुना नदी में अवैध खनन कोई नई बात नहीं है। लेकिन इसकी एवज में जब जान जोखिम में डलें तो बात आश्चर्यचकित कर सकती है। खनन चाहे एम फार्म के माध्यम से वैध भी हो लेकिन कतई भी बरसात का मौसम नदी में उतरने के लिए उपयुक्त नहीं है। एक समय में अगर 50 ट्रैक्टर भी नदी में मौजूद होते है तो उस वक्त 350 के आसपास लोगों की मौजूदगी होती है यानि अनहोनी की सूरत में हादसे की सीमा काफी ऊंची हो सकती है।
जी हां, बरसात के मौसम में हर रोज रेत व बजरी की लालच में लगभग 200 से 250 ट्रैक्टर नदी में उतरते है। एक ट्रैक्टर पर औसतन चालक समेत कुल 7 लोग होते है यानि आंकडा 1400 से 1750 के बीच होता है। अवैध खनन की लालच में इस बात का कतई भी होश नहीं रहता कि पहाडों में बारिश से अचानक ही नदी का जलस्तर बढ़ सकता है। समूचे प्रदेश में पर्यटकों को आगाह करने के मकसद से चेतावनी बोर्ड लगाए जाते है लेकिन पांवटा साहिब में अभी तक इस बात पर ध्यान नहीं दिया जा रहा है कि हजारों लोग रोजाना बारिश व नदी के जलस्तर की परवाह किए बिना अवैध खनन में जुट जाते है।
अतीत की बात की जाए तो कई बार नदी में घुसे ट्रैक्टर चालकों व मजदूरों को रैस्कयू भी किया गया। बडा सवाल यह भी है कि कम से कम बरसात के दौरान उन रास्तों को क्यों सील नहीं किया जाता जहां से यह ट्रैक्टर नदी में घुस जाते है।
एमबीएम न्यूज नेटवर्क को पाठकों ने ही ऐसी तस्वीरें भेजी है जो इस बात को साबित करती है कि किस तरीके से हजारों लोगों का जीवन दांव पर होता है। अपनी प्रतिक्रिया में पांवटा नगर परिषद के पूर्व अध्यक्ष संजय सिंघल ने भी इस बात से इत्तफाक रखा है कि नदी में जान को जोखिम में डालकर अवैध खनन किया जाता है। उनका कहना है कि समय रहते ही उचित कदम उठाएं जाने चाहिए। अन्यथा बडी अनहोनी की आंशका से इंकार नहीं किया जा सकता।
उधर इस बारे एसपी सौम्या सांबशिवान ने पूछे जाने पर कहा कि कई बार रेत व बजरी को एम फार्म के माध्यम से भी निकाला जाता है। जहां तक अवैध खनन की बात है तो इस पर कार्रवाई हो सकती है। एसपी का कहना है कि पांवटा पुलिस को इस बात के निर्देश दिए जाएंगे कि नदी का जलस्तर अधिक होने की सूरत में ट्रैक्टर चालकों को रोका जाएं।
क्यों डाली जाती है जानबूझकर जान जोखिम में ?
ऐसा बताया जा रहा है कि यमुना नदी में अवैध खनन के लिए 400 से 500 ट्रैक्टर संलिप्त रहते है। लेकिन बारिश के दौरान 50 प्रतिशत ट्रैक्टर मालिक जान को जोखिम में डालना मुनासिब नहीं समझते। लिहाजा आंकडा गिर जाता है। ऐसी सूरत में रेत व बजरी की ट्राली की कीमत में भी 500 से 700 रूपये का इजाफा हो जाता है। यहीं बडी वजह है कि बरसात के मौसम के बावजूद चंद रूपयों की खातिर जान को जोखिम में डाल दिया जाता है। पांवटा नप के पूर्व अध्यक्ष संजय सिंघल यह भी मानते है कि बरसात के मौसम में अब भी 200 से 250 ट्रैक्टर नदी में उतरते है।