नाहन, 30 अगस्त : बेशक ही सांकेतिक था, लेकिन शहर की चुनिंदा छतों पर नजारा रोमांचक था। आसमान में पतंगों को काटने वाली टोली ‘बोलो बे छोकरो काटा हे’, का घोष करती नजर आ रही थी। एक वक्त था, जब हर घर की छत पर पतंग उड़ाने वाली टोलियां जुटती थी। लेकिन अब चुनिंदा टोलियां ही छतों पर नजर आती हैं।

रक्षाबंधन के पर्व पर पतंगबाजी की रिवायत सिरमौर के रियासतकालीन से चलती आ रही है। पहले की तुलना में पतंगबाजी के चलन में लगातार गिरावट दर्ज हो रही है। शहर में पतंगबाजी धार्मिक सदभावना का भी प्रतीक मानी जाती है। दिलचस्प ये है कि बच्चों से बुजुर्गों तक सभी पतंगबाजी का शौक फरमाते हैं। हर साल कुछ देर के लिए पतंगबाजों से इंद्रदेव रुष्ट रहते हैं, लेकिन इस बार पूरा दिन ही धूप के बीच बादलों की लुकाछिपी चलती रही।
पतंग काटने का जश्न माइक पर भी गूंज रहा था। बाकायदा म्यूजिक सिस्टम भी लगे हुए थे। उधर, शहर में पतंगबाजी के लिए खास तरह की चरखी का इस्तेमाल भी जमकर हो रहा था।
दरअसल, बाजार में मिलने वाली चरखियों में डोर को उंगलियों से लपेटा जाता है, लेकिन यहां स्थानीय स्तर पर बनने वाली बेरिंग की चरखी को हाथ से चलाया जाता है। एक बार दोनों हाथों का इस्तेमाल करने पर सैंकड़ों मीटर डोर को एक पल में लपेट लिया जाता है।