नाहन
मैं क्रेन हूं…1621 में बसे नाहन शहर में पुलिस लाइन में रहती हूं। मुझे केवल 26 जनवरी, 15 अप्रैल व 15 अगस्त को ही ड्यूटी पर तैनात किया जाता है। ड्यूटी भी ऐसी कि कुछ करना नहीं होता, चौगान मैदान के नजदीक पार्क कर दी जाती हूं।

चौगान मैदान में कार्यक्रम चल रहा होता है, बड़े साहब शिमला से मुख्यातिथि बनकर आते हैं। अवैध पार्किंग करने वालों को मुझे डयूटी पर तैनात कर केवल यही जताना होता है कि इसमें बांध कर ले जाया जा सकता है। लेकिन कोई भी वाहन नहीं बांधा जाता। सालों से यही सोचती हूं कि नाहन की सड़कों पर तो अवैध पार्किंग का मंजर आम है…फिर मेरा इस्तेमाल क्यों नहीं होता।
डर इस बात का है कि बगैर डयूटी के ही एक दिन मुझे कंडम घोषित कर कबाड़ी को स्क्रैप में सौंप दिया जाएगा। यकीन मानिए, अगर मेरा इस्तेमाल ट्रैफिक पुलिस हफ्ते में दो दफा भी करे तो नाहन शहर की संकीर्ण सड़कों से अवैध पार्किंग हटनी शुरू हो जाएगी।
ये जरूर है कि शिमला वालों की तरह पुलिस को एक डंपिंग यार्ड बनाना पड़ेगा। ट्रैफिक चालान से राजस्व प्राप्ति होती है, मेरे इस्तेमाल से अधिक राजस्व भी जुटाया जा सकता है। कभी-कभी ये भी सुनती हूं कि मुझे चलाने के लिए नियमित चालक नहीं है तो आउटसोर्स पर क्यों नहीं चालक को लाया जा सकता।
मुझे….यदि नियमित तौर पर चौगान के आसपास भी पार्क कर दिया जाए तो मुझे लगता है कि अवैध पार्किंग खासकर बाहर से आने वाले लोगों में भी डर रहेगा। कोई मुझे बता रहा था कि अब तो शहर में बाहरी जिलों की गाड़ी वाले भी जमकर अवैध पार्किंग करने लगे हैं। केवल यही सवाल पूछना चाहती हूं कि अगर मुझे यूं ही पुलिस लाइन के एक कोने में पार्क करना था तो मुझे खरीदने पर लाखों रुपए क्यों खर्च किए गए होंगे।
खैर, अंतिम सांस लेने से पहले उम्मीद करती हूं कि कोई ऐसे एसपी साहब आएंगे, जो मेरा इस्तेमाल करने के आदेश देंगे, ताकि शहर को एक बार फिर नगीना बनाया जा सके।